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एआई की बढ़ती ताकत, चुनावी घोषणा-पत्र में मिली जगह………….

कृत्रिम मेधा से देश-दुनिया में तेजी से बदलाव आ रहे हैं, जो समय की जरूरत भी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से हम तेजी से आगे बढ़ सकते हैं और सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। गवर्नेंस पर भी इसका व्यापक प्रभाव दिखाई पड़ रहा है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रशिक्षण मॉडल इतने सशक्त हो गए हैं कि वो लोगों के मन की भावनाओं को भी समझने लगे हैं और भावनाओं को प्रभावित कर किसी एक पक्ष की ओर झुका भी सकते हैं। अमेरिकी चुनावों में इनकी प्रभावशाली उपस्थिति दुनिया देख चुकी है। एआई के सबसे खतरनाक उपयोग डीपफैक को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चिंता जताई है।
हाल ही में हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी एआई की सशक्त मौजूदगी का अहसास विभिन्न स्तरों पर हुआ है। राजनीतिक पार्टियों ने एआई का उपयोग आकर्षक घोषणा पत्र, प्रभावी वीडियो, उपलब्धियां बताने वाले लेख और अन्य प्रचार सामग्री, अपने उम्मीदवार की छवि गढ़ने, विरोधी उम्मीदवार को बुरा साबित करने जैसे कामों के लिए किया गया। सामान्यतया उम्मीदवार अपने घोषणा-पत्र में विकास के वादे करते हंै, समस्याओं से मुक्ति दिलाने की बात करते हैं, लोक लुभावन वादे करते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए इंदौर (मप्र) के एक विधायक प्रत्याशी रमेश मेंदोला ने तो एआई की ताकत और भविष्य की संभावनाओं का आंकलन करते हुए एआई का प्रशिक्षण दिलवाने का वादा ही अपने घोषणा-पत्र में कर दिया है। अपने क्षेत्र के युवाओं को आकर्षित करने का उनका यह प्रयास अपने आपमें अनूठा है। ऐसा करने वाले वो एकमात्र प्रत्याशी हैं।
लोगों के मन में एआई को लेकर एक डर है कि एआई उनकी नौकरियां लेकर उन्हें बेरोजगार बना देगा, लेकिन विषय विशेषज्ञों का कहना है कि एआई भविष्य की वो तकनीक है, जो नए रोजगारों का सृजन करेगी। युवाओं की टोलियों के समक्ष मेंदोला कहते हैं कि हमें एआई से डरने की नहीं, बल्कि उसका उपयोग करना सीखने की जरूरत है, क्योंकि नौकरी में आपकी जगह एआई नहीं, बल्कि उस क्षेत्र में एआई का उपयोग जानने वाला लेगा। बीते वर्षों में हमने देखा है कि टैली जैसे अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर के आने के बाद अकाउन्टेन्ट की नौकरियों पर खतरा महसूस किया गया था, लेकिन आज की हकीकत यह है कि सॉफ्टवेयर के चलन में आने के बाद कई ऐसे व्यवसायी भी अकाउंट रखने लगे हैं, जो जटिलता के चलते पहले इससे कतराते थे। इस कारण हजारों नए रोजगारों का सृजन हुआ है और टैली जानने वालों के लिए रोजगार की कमी नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखकर लोगों को अपने अपने क्षेत्र में एआई के उपयोग के बारे में प्रशिक्षण लेना चाहिए। एआई के प्रशिक्षण को लेकर उनकी इस अनूठी पहल से युवा वर्ग बेहद उत्साहित और प्रभावित है।आगामी चुनावों में हम देखेंगे कि जिस उम्मीदवार की पहुंच में जितने अधिक प्रभावी एआई टूल्स होंगे, उसके विजयी होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। मिसाल के तौर चुनावी खर्च पूरा करने के लिए पार्टी के उम्मीदवार अपने अभियान के लिए पार्टी समर्थकों से चंदा जुटाते हैं। प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों के हजारों ऐसे समर्थक होते हैं, जो चंदा दे सकते हैं, लेकिन सभी उम्मीदवार की जानकारी में नहीं होते। इनका पता पता लगाने के लिए उम्मीदवार एआई की मदद ले सकते हैं। एआई की सहायता से कम-से-कम समय में संभावित चंदा देने वालों की लिस्ट बनाई जा सकती है। एआई सॉफ्टवेयर तमाम समर्थकों की प्रोफाइल और उससे जुड़ी जानकारी को प्रोसेस कर के चन्दा दे सकने वालों की एक संभावित लिस्ट बना देता है। इससे एक तरफ उम्मीदवार के लिए चुनाव लड़ने का खर्च कम होता है तो दूसरी तरफ उसे जिन लोगों की लिस्ट मिलती है, वो उसके लिए की तरह से उपयोगी और फायदेमंद होती है।
आज का प्रत्याशी एआई का इस्तेमाल करके मतदाता से सीधे संवाद कर रहा है और हजारों मतदाताओं तक व्यक्तिगत पहुंच भी बना रहा है। सोशल मीडिया प्रबंधन टीम अपने उमीदवार और अपनी पार्टी के संदेश के साथ ही विपक्ष की कमियों को हर नागरिक के मोबाइल फोन तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है। बगैर एआई के यह बहुत समय खाऊ और अत्यधिक खर्चीला काम होता था। इसे बनाने वाला जनरेटिव एआई ‘चैट-जीपीटी’ पिछले साल नवंबर में लॉन्च किया गया था, जो अब आम लोगों के लिए उपलब्ध है। मतदाताओं की भावनाओं को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए वीडियो, फोटो और लेख जैसी प्रचार सामग्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ‘एआई’ से बनाए जाती है, जो लाखों मतदाताओं तक पहुंचाई जाती है, वो भी तेज गति से। इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए यह सामग्री मतदाताओं के छोटे समूहों को उनकी प्रोफाइल और प्राथमिकताओं के हिसाब से तैयार करके भेजी जाती है। लोग घर पर हों, आॅफिस में या कहीं और… लेकिन उनके फोन हमेशा आॅन रहते हैं, इसलिए डिजिटल माध्यम लोगों से संपर्क कर मैसेज, ईमेल, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि के जरिए चुनावी संदेश पहुंचाने का एक अच्छा औजार है, मगर प्रचार के इस तरीके में कहीं-ना-कहीं लोगों से सीधे संपर्क की कमी रह जाती है। यह बहस का मुद्दा है कि यह तरीका सीधे संपर्क से ज्यादा प्रभावी है या नहीं, लेकिन यह सच है कि इसके माध्यम से हम एक समय में कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ सकते हैं।
एक तरफ जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चुनावी प्रक्रिया में अधिक समानता लाने और उसे लोकतांत्रिक बनाने की क्षमता है तो दूसरी तरफ यह तकनीक चुनाव प्रचार में फर्जी सामग्री के इस्तेमाल से मतदाता को गुमराह कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी क्षति पहुंचाने में भी सक्षम है। ऐसे में यह सावधानी बरतना उचित होगा कि जो सामग्री परोसी गई है, उसे पहली बार में ही सच ना मान लिया जाए। वस्तुत: कोई भी निर्णय लेने से पहले मतदाताओं को स्वयं जागरूक होकर फैक्ट चैक वेबसाइट जैसे माध्यमों से यह पता लगाना होगा कि उनके पास जो प्रचार सामग्री आई है, वो असली है या नकली। इन संभावित खतरों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि समाज में एआई की बढ़ती स्वीकार्यता और इसकी व्यापक पहुंच के चलते विश्वभर में इसका उपयोग बहुतायत से होने लगा है और चुनाव जीतने की संभावनाओं को अपने पक्ष में करने के लिए एआई का उपयोग अब अनिवार्य होता जा रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वह दिन दूर नहीं, जब यह तकनीक इतनी आगे बढ़ जाएगी कि इसके इस्तेमाल के बिना चुनाव अभियान चलाना मुश्किल हो जाएगा। यहां तक कि एआई अकेले ही जीत की गारंटी बन जाएगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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