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पाकिस्तानी सांसद कमाल बोले… ‘भारत चांद पर और हम गटर में’

भारत की लगातार तरक्की और पीएम मोदी के नेतृत्व में दुनिया में बज रहे डंके की तारीफ पाकिस्तान भी जमकर हो रही है। पाकिस्तान में मुत्ताहिद कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) के सांसद सैयद मुस्तफा कमाल ने संसद में कराची के हालात बताते हुए कहा कि दुनिया चांद पर जा रही है और हमारे यहां मासूम बच्चे खुले हुए गटर में गिरकर मर रहे हैं।
एक ही स्क्रीन पर खबर है कि भारत चांद पर चला गया और उसी स्क्रीन पर 2 सेकेंड बाद खबर है कि कराची में किसी गटर में ढक्कन न होने से बच्चे गटर में गिरकर मर गए। उन्होंने कराची में पानी की भी किल्लत बताई। कहा का कराची में पानी माफिया टैंकरों के पानी को चोरी करके बेचते हैं। कमाल बोलते रहे। पाकिस्तान के सभी सांसद उन्हें चुपचाप सुनते रह गए। सैयद मुस्तफा ने कहा कि पाकिस्तान में ये हर तीसरे दिन ऐसा ही हो रहा है कि बच्चे गटर में गिर रहे हैं। मगर इस समस्या का निदान करने वाला कोई नहीं है।
उन्होंने कहा कि पिछले 15 सालों से कराची जैसे शहर को एक कतरा नया पानी नहीं दिया गया। उन लाइनों में जो पानी आता था, उसको चोरी करके पानी माफिया बेच रहे हैं। आज सिंध भर में 48 हजार स्कूल हैं, उनमें से 11 हजार घोस्ट स्कूल होने की रिपोर्ट आई है। हमारे मुल्क में 2 करोड़ 62 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। यह आंकड़ा भयावह है।

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नोट में नेपाल ने शामिल किए भारत के 3 इलाके

नेपाल ने शुक्रवार को मैप के साथ 100 रुपए के नए नोट छापने का ऐलान किया। इन नोटों में भारत के इलाकों- लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को दिखाया गया है। एजेंसी के मुताबिक सरकार की प्रवक्ता रेखा शर्मा ने कैबिनेट फैसले की जानकारी हुए बताया कि प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद् की बैठक में नेपाल का नया नक्शा छापने का फैसला लिया गया, जिसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को 100 रुपए के बैंक नोटों में शामिल किया गया है।

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‘मजदूरों का ख्याल रखने वाले बने उद्योगों के हितैषी’

मजदूरों के संघर्ष और बलिदान को याद कर हर 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है। कई उद्योगों में श्रमिक संगठनों ने संयुक्त रूप से मजदूर दिवस मनाते हुए श्रमिकों के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए। इस अवसर पर श्रमिकों के हित में आवाज उठाते हुए शहीद हुए श्रमिकों को याद भी किया गया। पीथमपुर सेक्टर-1 में सभा कर शहीद मजदूर साथियों को याद किया गया।
1 मई, 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में अपनी मांगों के लिए एकत्र लोगों पर हमले में शहीद हुए मजदूरों के संघर्ष के लगातार प्रयास से मिनिमम वैज, काम के घंटे, सामाजिक सुरक्षा, अन्य सुविधा मिली। मजदूरों की एकता और संघर्ष के अभाव से सभी खत्म होते जा रहे हैं। जिन कानूनों को बनाने के लिए वर्षों आंदोलन किए… वर्तमान में उन कानूनों को पिछले रास्ते से खत्म किया जा रहा है। अभी-अभी एक नया आदेश जारी कर जो श्रमिक आॅनलाइन शिकायत करेगा… सुविधा बताकर 100/50 खर्च की परेशानी बढ़ रही है।
मजदूरों ने इस अवसर पर कहा कि मजदूरों का ख्याल रखने वाला श्रम विभाग और उसके अधिकारी उद्योग विभाग और उसके हितैषी बन गए हैं। 1 अप्रैल से मीनिमम वैज रिवाइज हुआ, उसका पालन नहीं किया जा रहा है। ईएसआईसी अंशदान के रूप में लाखों-करोड़ों रुपए मजदूरों के वेतन से कटौती के बाद भी पीथमपुर जैसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र में ईएसआईसी का हॉस्पिटल तक नहीं बनाया जा रहा है, जबकि वर्षों पूर्व भूमि का चयन हो चुका है।

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अब भारत सरकार के निशाने पर एमडीएच-एवरेस्ट मसाले

चीन और सिंगापुर में भारतीय मसाला कंपनी के कुछ मसालों पर न सिर्फ प्रतिबंध लगा, बल्कि बाजार से इन्हें वापस करने के आदेश दिए हैं। इस प्रतिबंध के बाद भारत सरकार ने इन एवरेस्ट और एडीएच मसालों की गुणवत्ता की जांच के आदेश दिए हैं। दूसरी कंपनियों के मसाले भी जांचे जाएंगे।
सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग की भारतीय कंपनी के मसालों पर कार्रवाई के बाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (ऋउउक) ने सभी ब्रांड के मसालों के नमूने लेना शुरू कर दिए हैं। मौजूदा स्थिति के मद्देनजर एमडीएच और एवरेस्ट के नमूने ले रहे हैं, ताकि यह जांचा जा सके कि वे एफएसएसएआई मानदंडों को पूरा करते हैं या नहीं? एफएसएसएआई निर्यातित मसालों की गुणवत्ता को नियंत्रित नहीं करता है।

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बैठक के बाद संकेत… मौद्रिक नीति का मार्ग और शेयर बाजारों में तेजी

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने अपनी दो दिवसीय बैठक के बाद यह संकेत देकर शेयर बाजारों में तेजी ला दी कि वह इस वर्ष नीतिगत ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की कटौती के मार्ग पर बनी रहेगी। इस वर्ष मुद्रास्फीति के पूर्वानुमान में इजाफे के बावजूद ऐसा किया जा रहा है। हालांकि फेड से यह उम्मीद नहीं थी कि वह मार्च की बैठक में नीतिगत दरों में कटौती करेगा, लेकिन कुछ बाजार प्रतिभागी इस बात को लेकर चिंतित थे कि मुद्रास्फीति के हालात नीतिगत दरों में कटौती की संभावना को कम कर सकते हैं या उसमें देर कर सकते हैं।
निश्चित तौर पर फेडरल रिजर्व के बोर्ड सदस्यों तथा फेडरल रिजर्व बैंक के प्रेसिडेंट के ताजा अनुमान दिखाते हैं कि 2024 में मध्यम कोर मुद्रास्फीति की दर 2.6 फीसदी रहेगी, जबकि दिसंबर में इसके 2.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया था। चालू वर्ष की आर्थिक वृद्धि के अनुमानों को भी दिसंबर के 2.1 फीसदी से संशोधित करके 1.4 फीसदी कर दिया गया है। आर्थिक वृद्धि की गति और कीमतों पर पड़ रहे दबाव को देखते हुए टिकाऊ ढंग से दो फीसदी का मुद्रास्फीति लक्ष्य हासिल करने में कुछ वक्त लग सकता है। जैसा कि फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जीरोम पॉवेल ने अपनी टिप्पणी में कहा- यह सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहने वाला है। चाहे जो भी हो, फेडरल फंड्स की दर का लक्षित दायरा 5.25 से 5.5 फीसदी है, जो दो दशक का उच्चतम स्तर है और यह दरों में कटौती की प्रक्रिया शुरू करने की गुंजाइश देता है। बहरहाल, फेड चालू वर्ष में और अगले वर्ष में किस हद तक कटौती करने में सक्षम होता है… यह देखना होगा। बाजार जहां फेड के दरों में कटौती करने की प्रतीक्षा कर रहा है, वहीं बैंक आॅफ जापान ने इस सप्ताह 17 वर्षों में पहली बार नीतिगत दरों में इजाफा किया। मंगलवार को वह ऋणात्मक नीतिगत दर व्यवस्था समाप्त करने वाला पहला केंद्रीय बैंक भी बन गया और उसने नीतिगत दर को 0-0.1 के दायरे में बढ़ा दिया। बैंक आॅफ जापान ने एक्सचेंज ट्रेडेड फंड के साथ यील्ड कर्व नियंत्रण कार्यक्रम को भी समाप्त करने का निर्णय लिया। बहरहाल, केंद्रीय बैंक जरूरत के मुताबिक बाजार से दीर्घावधि के सरकारी बॉण्ड की खरीद जारी रखेगा।
ऋणात्मक नीतिगत ब्याज दरों का विचार हमेशा से विवादास्पद रहा है और यह स्पष्ट नहीं है कि इससे अर्थव्यवस्थाओं को लाभ हुआ या नहीं। बैंक आॅफ जापान के अलावा अन्य केंद्रीय बैंकों, मसलन- यूरोपीय केंद्रीय बैंक तथा स्विट्जरलैंड और स्वीडन के केंद्रीय बैंकों ने ऋणात्मक ब्याज दरों के साथ प्रयोग किया।
इसकी शुरुआत 2010 के दशक में हुई थी, जब केंद्रीय बैंकों खासकर पश्चिमी देशों के बैंकों की ओर से यह कोशिश हो रही थी कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाया जाए। कुछ यूरोपीय देशों में सॉवरिन ऋण बाजार की समस्या ने भी आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया और केंद्रीय बैंक को आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने की प्रेरणा दी। बहरहाल, जापान ने इसे भी अपस्फीति से लड़ाई का एक और औजार माना। ध्यान रहे कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने कभी नीतिगत दरों को ऋणात्मक नहीं होने दिया।
वैश्विक वित्तीय बाजार में जापानी पूंजी की सीमित भूमिका को देखते हुए नीतिगत कदमों का भी सीमित प्रभाव है। इसके अलावा मौजूदा आर्थिक हालात में बैंक आॅफ जापान निकट भविष्य में मौद्रिक नीति को सख्त नहीं बना सकता। ऐसे में बाजार फेड पर ध्यान देगा और कुछ हद तक यूरोपीय केंद्रीय बैंक पर भी।
यह उम्मीद करना उचित है कि आने वाली तिमाहियों में वैश्विक वित्तीय हालात आसान होंगे, जिससे भारत जैसे उभरते बाजारों में पूंजी की आवक बढ़ेगी। ऐसे हालात में नीति निर्माताओं को मुद्रा कीमतों में अनावश्यक वृद्धि और परिसंपत्ति मूल्य मुद्रास्फीति से बचना होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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