भोपाल में पानी का सबसे बड़ा स्रोत और शहर की लाइफ लाइन बड़े तालाब को सेहतमंद रखने वाले जलीय पौधों पर खतरा मंडरा रहा है। तालाब के आसपास लगातार बढ़ रहा अतिक्रमण, इंसानी दखल और सीवेज मिलने के कारण पैदा होने वाली जलकुंभी इन एक्वाटिक प्लांट को धीरे-धीरे खत्म कर रही है। जब हमने इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) के साथ मिलकर मैक्रोफाइट्स आॅफ भोज वेटलैंड विषय पर रिसर्च की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं। तीन साल तक हुई इस रिसर्च में पता चला कि यहां पर 223 प्रजातियों के जलीय पौधे हैं, जिसमें से 103 प्रजाति के पौधे विलुप्ति के कगार पर हैं।
इनमें बड़ी संख्या में ऐसे पौधे हैं, जो पानी में मौजूद विषैले तत्वों को खत्म करते हैं और पानी को साफ करते हैं। इन पौधों से पानी में आॅक्सीजन की मात्रा बनी रहती है, जो अन्य जल जीवों के बने रहने और बढ़ोतरी के लिए जरूरी हैं। तीन ऐसी प्रजाति के पौधे भी यहां हैं, जो मांसाहारी हैं और इनकी जड़ें और फूल तालाब में मौजूद कीड़ों को खाते हैं।
कुल मिलाकर इन जलीय पौधों की वजह से बड़े तालाब की जैव विविधता और ईको सिस्टम बना रहता है, जो किसी भी वाटर बॉडी की लंबी उम्र के लिए जरूरी है। इस समय बड़े तालाब के लिए जलकुंभी और बेशरम के पौधों से सबसे बड़ा खतरा है। ये जलकुंभी और बेशरम के पौधों को हटाते वक्त भी ये सावधानी जरूरी है कि इनसे अन्य जलीय पौधों को नुकसान न पहुंचे।
कैसे खत्म हो रहे जलीय पौधे
’ तालाब के आसपास अतिक्रमण और अन्य तरह की गतिविधियों के कारण जलीय पौधों को नुकसान।
’ विदेशी पौधों की प्रजातियां, जैसे- जलकुंभी, बेशरम आदि लोकल एक्वाटिक प्रजातियों को खत्म कर रही हैं। ये एक तरह से पानी की गाजर घास हैं।
’ चारों ओर हो रहे कंस्ट्रक्शन वर्क की वजह से पौधों को नुकसान पहुंच रहा है।
’ अधिक पशु चराई, फिशिंग और टूरिज्म की वजह की वजह से भी पौधे खत्म हो रहे हैं।
’ सिंघाड़े की खेती में उपयोग होने वाली कीटनाशक।