इंदौर। पीएम नरेंद्र मोदी का मंत्र है ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’। वहीं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का मंत्र है न इस्तेमाल करेंगे, न इस्तेमाल करने देंगे। कुलपति या उनकी टीम जितनी उपलब्धियां गिनाएं, हकीकत यही है। विश्वविद्यालय परिसर में खड़ी आई सर्जरी वैन इसका उदाहरण है। 2001 में इंग्लैंड के डॉ. अर्नाल्ड ने उनकी पत्नी वेरोनिका की स्मृति में ग्रामीण व दुगर्म क्षेत्र में सेवाएं देने के लिए दान दी गई इस वैन का आखिरी उपयोग 2004 में हुआ था। कई बार इस वैन को विश्वविद्यालय ने एमजीएम को दान देने का मन तो बनाया लेकिन दिया नहीं। दान के इंतजार में ही एक करोड़ की वैन भंगार हो गई। डीएवीवी में कुलपति आॅफिस के पीछे एक वैन खड़ी है। जो स्टूडेंट्स के कोतुहल का विषय है। जो स्टूडेंट्स पहली बार परिसर जाते हैं, देखते हैं और समझने की कोशीश करते हैं कि मर्सडिज कंपनी द्वारा बनाई गई यह वेन ऐसे बर्बाद क्यों हो रही है? कार्यालय में पदस्थ अफसरों से पूछते भी हैं। जवाब मिलता है कोई अच्छी संस्था मिल जाएगी तो दान कर देंगे। हिंदुस्तान मेल ने मामले में छानबीन की। पता चला 2001-02 में तत्कालीन कुलपति डॉ. भरत छपरवाल को इंग्लैंड के डॉ. अर्नाल्ड ने मर्सडीज ट्रक पर बनी वैन दान की थी। इसमें आंखों की जांच से लेकर आॅपरेशन (ओटी) तक की सुविधा थी। बिजली के लिए जनरेटर है। वॉटर टैंक था। दवाइयां रखने के लिए छोटा फ्रिज भी है। बीस साल पहले इसकी कीमत करीब 90 लाख रुपए थी।
2003 में पहली बार वैन का उपयोग आंखो की जांच व शिविर के लिए किया गया था। तब विश्व विद्यालय और एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने मिलकर धार के नजदीक एक गांव में शिविर लगाया था। 2004 में देवास से लगे गांव में ग्रामीणो के आंखो की जांच की गई। 2010 में खजराना में वैन से शिविर लगा था। इसके बाद वैन का इस्तेमाल नहीं हुआ। उपयोग हुआ।