मध्यप्रदेश का 18वां मुख्यमंत्री भाजपा से ही होगा, लेकिन कौन? 8 दिन से चल रहा यह सस्पेंस आज शाम चार बजे समाप्त हो जाएगा। पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से मप्र, छग और राजस्थान में भाजपा सत्ता में आई है। छत्तीसगढ़ का पैटर्न मप्र में भी अपनाया जाना तय है, यानी यहां भी गुटीय संतुलन के लिए मुख्यमंत्री के साथ दो उप मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं। मप्र में भाजपा का दो डिप्टी सीएम वाला यह पहला प्रयोग होगा।
लाड़ली बहनों का आशीर्वाद फलीभूत हुआ तो शिवराज सिंह पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं। कुछ समय बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें विदिशा से सांसद चुनाव लड़ाकर मोदी अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर सकते हैं। पार्टी नेतृत्व ने यदि जवाब में उन्हें भी राम-राम कहते हुए लाड़ली बहनों का मान बढ़ाने का मन बना लिया तो मंडला से विधायक का चुनाव जीतीं पूर्व राज्यसभा सदस्य संपतिया उइके, सीधी से जीतीं रीति पाठक (पूर्व सांसद) के नाम पर तीनों पर्यवेक्षक केंद्रीय नेतृत्व का फैसला सुनाकर सर्वानुमति की घोषणा कर सकते हैं।
ग्वालियर-चंबल संभाग के कद्दावर नेता-प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे-पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बागडोर सौंपी जाए या लोधी समाज के जीते सर्वाधिक 10 विधायक में से एक प्रह्लाद पटेल को मौका दिया जाए या मालवा-निमाड़ में भाजपा को पुन: मजबूत साबित करने वाले कैलाश विजयवर्गीय को सीएम बनाने की मांग करने वाले इंदौर के विभिन्न संगठनों-समर्थकों को खुश किया जाए, यह आज शाम चार बजे तक स्पष्ट हो जाएगा। तोमर, सिंधिया, पटेल, विजयवर्गीय ये सभी केंद्रीय मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर चुके हैं। इनका मान-सम्मान डिप्टी सीएम, विधानसभा अध्यक्ष, प्रदेश के गृहमंत्री के रूप में भी कायम रखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ में भी पूर्व सीएम रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है।
मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा के बाद यह उत्सुकता रहना तय है कि मंत्रिमंडल में इंदौर से जीते 9 विधायकों में से कितने को प्रतिनिधित्व मिलेगा। प्रदेश में सर्वाधिक मतों से जीते रमेश मेंदोला, विधायक उषा ठाकुर, मालिनी गौड़, महेंद्र हार्डिया, महू से उषा ठाकुर, सांवेर से जीते तुलसी सिलावट की प्रबल दावेदारी है।
3 दिसंबर के बाद से शिवराज सिंह जिस तरह सक्रिय हैं और अपने बयानों से जो हलचल मचा रहे हैं उसमें यह संकेत भी है कि लोकसभा चुनाव तक शिवराज की अनदेखी करना केंद्र के लिए भी संभव नहीं है। मप्र के पुरुष मतदाताओं ने मोदी की गारंटी पर जितना भरोसा किया है, परिवार की बहन-बेटियों ने भी लाड़ले भैया, मामा पर भी उतना ही प्यार लुटाया है। वे यदि पांचवीं बार सीएम नहीं भी बनते हैं तो प्रदेश में भैया और मामा का पद उनसे कोई नहीं छीन सकता।
तीनों पर्यवेक्षक क्या वाकई 163 विधायकों से वन टू वन चर्चा करने आ रहे हैं या मोशाजी के मन में एमपी को लेकर क्या है यह बताने आ रहे हैं? आम कार्यकर्ताओं में यह जिज्ञासा इसलिए भी है कि पर्यवेक्षकों के आगमन पर स्वागत द्वार-बैनर-पोस्टर से लेकर बैठक स्थल पर बैकड्रॉप की डिजाइन, नेताओं के कटआउट आदि सब कुछ दिल्ली से तय हो रहा है ऐसे में यही होना है कि विधायकों से बैठक में तीनों पर्यवेक्षक दिल्ली से तय नाम की जानकारी देंगे और सभी विधायक आम सहमति व्यक्त करेंगे।
तीनों केंद्रीय मंत्रियों, सात सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारकर एक तरह से भाजपा नेतृत्व ने इन क्षेत्रों में नए चेहरों को मौका देने के संकेत भी दे दिए हैं। यह भी संभव है कि छह महीने बाद भाजपा इंदौर से कैलाश विजयवर्गीय को लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला करके आसपास के संसदीय क्षेत्रों में भी उनकी पैठ का लाभ लेने की प्लॉनिंग कर ले। इंदौर संसदीय क्षेत्र से शंकर लालवानी को दूसरी बार टिकट मिलने की संभावना कम ही है। इंदौर जिले की नौ सीटों पर भाजपा का कब्जा होने के बाद अब लोकसभा चुनाव जीत पाना तो दूर, कांग्रेस प्रभावी प्रदर्शन करने की स्थिति में भी नहीं है। उसके सामने सबसे बड़ा संकट तो यही है कि प्रत्याशी किसे बनाएगी? जो विधायक का चुनाव नहीं जीत पाए उन हारे हुओं में से किसी को टिकट दे भी दिया तो जरूरी नहीं कि मोदी की गारंटी के आगे मतदाता उन्हें जिताने की गारंटी लेने की उदारता दिखाएं।
छत्तीसगढ़ में साय सीएम
विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री होंगे। बीजेपी विधायक दल की रविवार को हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। पहले से ही यह अनुमान जताया जा रहा था कि अगर भाजपा 2003 से 2018 तक तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके रमन सिंह को नहीं चुनती है तो वह किसी ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) या आदिवासी समुदाय से ही मुख्यमंत्री को चुनेगी और हुआ भी ऐसा ही। राज्य के अगले मुख्यमंत्री को लेकर अनिश्चितता को खत्म करते हुए भाजपा के नवनिर्वाचित 54 विधायकों की अहम बैठक में विष्णु देव साय के नाम पर मुहर लगा दी गई। राज्य की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी है। जिस सरगुजा क्षेत्र से भाजपा को पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी, वहां इस बार भाजपा ने प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है तो बदले में साय को सीएम बनाकर इस क्षेत्र के मतदाताओं का ‘सरगुजिया सरकार’ का सपना भी केंद्र ने पूरा कर दिया है। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 90 में से 54 सीट जीती हैं। वहीं 2018 में 68 सीट जीतने वाली कांग्रेस 35 सीट पर सिमट गई है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) एक सीट जीतने में कामयाब रही।