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जनप्रतिनिधि ले रहे ओपीएसविरोध : अफसर-कर्मचारियों के लिए नई स्कीम

हिन्दुस्तान मेल, भोपाल
ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) के मसले ने अब धीरे-धीरे जोर पकड़ लिया है। मप्र में भी इसकी मांग की ही जा रही है। रेलवे के कर्मचारियों ने भी मोर्चा खोल दिया है। दूसरी तरफ जिन माननीयों को इस पर निर्णय लेना है, वे खुद पुरानी पेंशन प्रणाली यानी ओपीएस का फायदा ले रहे हैं। पूर्व सांसदों और विधायकों को इस समय 20 हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक औसतन पेंशन मिल रही है, जबकि 2004-05 के बाद भर्ती हुए कर्मचारियों व अधिकारियों को एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम) में जाना पड़ रहा है। विधायकों का मासिक वेतन भत्तों के साथ 1.10 लाख रुपए है। मंत्रियों का वेतन दो लाख रुपए तक जाता है।
हर बार विधायक-सांसद बनने पर बढ़ती है पेंशन- एक साथ 3 पेंशन भी। विधानसभा में यह नियम भी है कि कोई नेता जो कभी विधायक रहा, सांसद रहा या राजनीति में आने से पहले सरकारी मुलाजिम था, वह तीनों की पेंशन एक साथ ले सकता है। यदि कोई एक बार सांसद बन गया तो 25 हजार और विधायक बन गया तो 20 हजार रुपए पेंशन का हकदार हो जाता है। राज्यसभा सदस्य बने तो 6 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद 27 हजार रुपए से पेंशन की शुरुआत होती है। हर साल इसमें कम से कम 500 रुपए का इजाफा होता है।
यह दोहरापन है : पूर्व मुख्य सचिव
मप्र के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि ओपीएस की तुलना में एनपीएस में बहुत छोटी राशि पेंशन के रूप में मिलती है। जो कर्मचारी 35 से 40 साल सेवा देगा, उसे एनपीएस में और जो सिर्फ पांच साल विधायक या सांसद रहते हैं तो उन्हें पुरानी पेंशन व्यवस्था से पैसा मिले, यह दोहरापन है। इसे अनुचित भी कहा जाएगा। हर हालत में कर्मचारियों को भी ओपीएस में लाना चाहिए।
पूर्व सांसदों का वेतन बंद नहीं हुआ- महाराष्ट्र में कांग्रेस सांसद रहे बालू धानोरकर ने वित्तमंत्री सीतारमण से मांग की थी कि ऐसे पूर्व सांसदों की पेंशन बंद कर दी जाए जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं। पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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