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एआई की बढ़ती ताकत, चुनावी घोषणा-पत्र में मिली जगह………….

कृत्रिम मेधा से देश-दुनिया में तेजी से बदलाव आ रहे हैं, जो समय की जरूरत भी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से हम तेजी से आगे बढ़ सकते हैं और सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। गवर्नेंस पर भी इसका व्यापक प्रभाव दिखाई पड़ रहा है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रशिक्षण मॉडल इतने सशक्त हो गए हैं कि वो लोगों के मन की भावनाओं को भी समझने लगे हैं और भावनाओं को प्रभावित कर किसी एक पक्ष की ओर झुका भी सकते हैं। अमेरिकी चुनावों में इनकी प्रभावशाली उपस्थिति दुनिया देख चुकी है। एआई के सबसे खतरनाक उपयोग डीपफैक को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चिंता जताई है।
हाल ही में हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी एआई की सशक्त मौजूदगी का अहसास विभिन्न स्तरों पर हुआ है। राजनीतिक पार्टियों ने एआई का उपयोग आकर्षक घोषणा पत्र, प्रभावी वीडियो, उपलब्धियां बताने वाले लेख और अन्य प्रचार सामग्री, अपने उम्मीदवार की छवि गढ़ने, विरोधी उम्मीदवार को बुरा साबित करने जैसे कामों के लिए किया गया। सामान्यतया उम्मीदवार अपने घोषणा-पत्र में विकास के वादे करते हंै, समस्याओं से मुक्ति दिलाने की बात करते हैं, लोक लुभावन वादे करते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए इंदौर (मप्र) के एक विधायक प्रत्याशी रमेश मेंदोला ने तो एआई की ताकत और भविष्य की संभावनाओं का आंकलन करते हुए एआई का प्रशिक्षण दिलवाने का वादा ही अपने घोषणा-पत्र में कर दिया है। अपने क्षेत्र के युवाओं को आकर्षित करने का उनका यह प्रयास अपने आपमें अनूठा है। ऐसा करने वाले वो एकमात्र प्रत्याशी हैं।
लोगों के मन में एआई को लेकर एक डर है कि एआई उनकी नौकरियां लेकर उन्हें बेरोजगार बना देगा, लेकिन विषय विशेषज्ञों का कहना है कि एआई भविष्य की वो तकनीक है, जो नए रोजगारों का सृजन करेगी। युवाओं की टोलियों के समक्ष मेंदोला कहते हैं कि हमें एआई से डरने की नहीं, बल्कि उसका उपयोग करना सीखने की जरूरत है, क्योंकि नौकरी में आपकी जगह एआई नहीं, बल्कि उस क्षेत्र में एआई का उपयोग जानने वाला लेगा। बीते वर्षों में हमने देखा है कि टैली जैसे अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर के आने के बाद अकाउन्टेन्ट की नौकरियों पर खतरा महसूस किया गया था, लेकिन आज की हकीकत यह है कि सॉफ्टवेयर के चलन में आने के बाद कई ऐसे व्यवसायी भी अकाउंट रखने लगे हैं, जो जटिलता के चलते पहले इससे कतराते थे। इस कारण हजारों नए रोजगारों का सृजन हुआ है और टैली जानने वालों के लिए रोजगार की कमी नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखकर लोगों को अपने अपने क्षेत्र में एआई के उपयोग के बारे में प्रशिक्षण लेना चाहिए। एआई के प्रशिक्षण को लेकर उनकी इस अनूठी पहल से युवा वर्ग बेहद उत्साहित और प्रभावित है।आगामी चुनावों में हम देखेंगे कि जिस उम्मीदवार की पहुंच में जितने अधिक प्रभावी एआई टूल्स होंगे, उसके विजयी होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। मिसाल के तौर चुनावी खर्च पूरा करने के लिए पार्टी के उम्मीदवार अपने अभियान के लिए पार्टी समर्थकों से चंदा जुटाते हैं। प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों के हजारों ऐसे समर्थक होते हैं, जो चंदा दे सकते हैं, लेकिन सभी उम्मीदवार की जानकारी में नहीं होते। इनका पता पता लगाने के लिए उम्मीदवार एआई की मदद ले सकते हैं। एआई की सहायता से कम-से-कम समय में संभावित चंदा देने वालों की लिस्ट बनाई जा सकती है। एआई सॉफ्टवेयर तमाम समर्थकों की प्रोफाइल और उससे जुड़ी जानकारी को प्रोसेस कर के चन्दा दे सकने वालों की एक संभावित लिस्ट बना देता है। इससे एक तरफ उम्मीदवार के लिए चुनाव लड़ने का खर्च कम होता है तो दूसरी तरफ उसे जिन लोगों की लिस्ट मिलती है, वो उसके लिए की तरह से उपयोगी और फायदेमंद होती है।
आज का प्रत्याशी एआई का इस्तेमाल करके मतदाता से सीधे संवाद कर रहा है और हजारों मतदाताओं तक व्यक्तिगत पहुंच भी बना रहा है। सोशल मीडिया प्रबंधन टीम अपने उमीदवार और अपनी पार्टी के संदेश के साथ ही विपक्ष की कमियों को हर नागरिक के मोबाइल फोन तक पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है। बगैर एआई के यह बहुत समय खाऊ और अत्यधिक खर्चीला काम होता था। इसे बनाने वाला जनरेटिव एआई ‘चैट-जीपीटी’ पिछले साल नवंबर में लॉन्च किया गया था, जो अब आम लोगों के लिए उपलब्ध है। मतदाताओं की भावनाओं को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए वीडियो, फोटो और लेख जैसी प्रचार सामग्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ‘एआई’ से बनाए जाती है, जो लाखों मतदाताओं तक पहुंचाई जाती है, वो भी तेज गति से। इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए यह सामग्री मतदाताओं के छोटे समूहों को उनकी प्रोफाइल और प्राथमिकताओं के हिसाब से तैयार करके भेजी जाती है। लोग घर पर हों, आॅफिस में या कहीं और… लेकिन उनके फोन हमेशा आॅन रहते हैं, इसलिए डिजिटल माध्यम लोगों से संपर्क कर मैसेज, ईमेल, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि के जरिए चुनावी संदेश पहुंचाने का एक अच्छा औजार है, मगर प्रचार के इस तरीके में कहीं-ना-कहीं लोगों से सीधे संपर्क की कमी रह जाती है। यह बहस का मुद्दा है कि यह तरीका सीधे संपर्क से ज्यादा प्रभावी है या नहीं, लेकिन यह सच है कि इसके माध्यम से हम एक समय में कहीं ज्यादा लोगों से जुड़ सकते हैं।
एक तरफ जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चुनावी प्रक्रिया में अधिक समानता लाने और उसे लोकतांत्रिक बनाने की क्षमता है तो दूसरी तरफ यह तकनीक चुनाव प्रचार में फर्जी सामग्री के इस्तेमाल से मतदाता को गुमराह कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी क्षति पहुंचाने में भी सक्षम है। ऐसे में यह सावधानी बरतना उचित होगा कि जो सामग्री परोसी गई है, उसे पहली बार में ही सच ना मान लिया जाए। वस्तुत: कोई भी निर्णय लेने से पहले मतदाताओं को स्वयं जागरूक होकर फैक्ट चैक वेबसाइट जैसे माध्यमों से यह पता लगाना होगा कि उनके पास जो प्रचार सामग्री आई है, वो असली है या नकली। इन संभावित खतरों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि समाज में एआई की बढ़ती स्वीकार्यता और इसकी व्यापक पहुंच के चलते विश्वभर में इसका उपयोग बहुतायत से होने लगा है और चुनाव जीतने की संभावनाओं को अपने पक्ष में करने के लिए एआई का उपयोग अब अनिवार्य होता जा रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वह दिन दूर नहीं, जब यह तकनीक इतनी आगे बढ़ जाएगी कि इसके इस्तेमाल के बिना चुनाव अभियान चलाना मुश्किल हो जाएगा। यहां तक कि एआई अकेले ही जीत की गारंटी बन जाएगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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नासा ने भारत से चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग टेक्नोलॉजी मांगी

रामेश्वरम, एजेंसी
चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग कराकर भारत ने इतिहास रचा है। भारत की इस कामयाबी का लोहा अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ठअरअ ने भी माना है। करफड प्रमुख एस. सोमनाथ ने बताया कि ठअरअ के वैज्ञानिकों ने भारत से टेक्नोलॉजी मांगी है। जब हमने चंद्रयान-3 डेवलप किया तो ठअरअ-खढछ (जेट प्रपुल्शन लेबोरेटरी) के वैज्ञानिकों को बुलाया। ये वैज्ञानिक दुनिया के कई रॉकेट और कई कठिन मिशनों को अंजाम दे चुके हैं।
ठअरअ-खढछ से 5-6 लोग करफड हेडक्वार्टर आए थे। हमने उन्हें समझाया कि कैसे 23 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। हमने उन्हें अपनी डिजाइन समझाई। ये भी बताया कि हमारे इंजीनियर्स ने इसे कैसे बनाया। इन सब बातों को सुनकर वे इतना ही बोले- नो कमेंट्स। सब कुछ अच्छा ही होने वाला है। सोमनाथ ने ये बातें रविवार 15 अक्टूबर को रामेश्वरम में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने कहा- भारत एक ताकतवर देश है। हमारा ज्ञान और इंटेलिजेंस लेवल दुनिया के बेस्ट देशों में से एक है।
इसरो प्रमुख ने ये भी कहा कि आपको (स्टूडेंट्स) समझना होगा कि आज वक्त कैसे बदल रहा है। आज हम बेस्ट इक्विपमेंट्स, बेस्ट डिवाइसेस और बेस्ट रॉकेट बना रहे हैं। ये सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पेस सेक्टर को खोल दिया है। मैं तो स्टूडेंट्स से कह रहा हूं कि स्पेस सेक्टर में आएं और रॉकेट, सैटेलाइट बनाएं और देश को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मजबूत बनाएं। केवल इसरो ही नहीं, अंतरिक्ष के क्षेत्र में हर कोई कुछ कर सकता है। भारत में आज 5 कंपनियां रॉकेट और सैटेलाइट बना रही हैं। भारत चांद के साउथ पोल पर स्पेसक्रॉफ्ट उतारने वाला इकलौता देश है। इसके साथ ही भारत चांद पर लैंडिंग कराने वाला अमेरिका, सोवियत संघ (रूस), चीन के बाद चौथा देश है।

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एआई की राह पर चला वाट्सएप, इस तरह बना पाएंगे खुद के अक जनरेटेड स्टीकर्स

नई दिल्ली। इंस्टैंट मैसेजिंग एप वाट्सएप बीटा ने अपने प्लेटफॉर्म पर एआई स्टीकर का सपोर्ट एड किया है। वाट्सएप पर यह पहला फीचर है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करेगा और अक स्टीकर बनाने में मदद करेगा। अक स्टीकर बनाने का विकल्प अभी केवल एंड्रॉइड 2.23.17.14 अपडेट में उपलब्ध है, जिसे केवल कुछ चुनिंदा यूजर्स ही इस्तेमाल कर सकते हैं। आने वाले दिनों में इस फीचर को सभी यूजर्स के लिए दुनियाभर में रोलआउट किया जा सकता है।

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करीब आ गई वो घड़ी…अपने ‘चंद्रयान-3’ के लिए दुआएं कीजिए

चंद्रयान-3 मिशन आज अपने एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गया है। चंद्रयान अब चांद के और करीब पहुंच चुका है। चंद्रयान को चंद्रमा की 153 किलोमीटर ७ 163 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित कर दिया गया। इसके साथ ही चंद्रमा की सीमा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो गई। अब चंद्रयान के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर अलग होने के लिए तैयार हैं। यह चंद्रयान के लिए बेहद नाजुक मौका है। ऐसे में देशवासी दुआएं कर रहे हैं कि सब कुछ ठीक से हो। इसरो की तरफ से आज इन्हें अलग-अलग किया जाएगा। प्रोपल्शन से अलग होने के बाद लैंडर की अपनी प्रारंभिक जांच होगी। इसरो का कहना है कि लैंडर में चार मुख्य थ्रस्टर्स हैं। ये लैंडर को चंद्रमा की सतह पर आसानी से उतरने में सक्षम बनाएंगे। साथ ही अन्य सेंसर का भी परीक्षण करने की आवश्यकता है।
चंद्रयान-3 में एक प्रोपल्शन या प्रणोदक मॉड्यूल है। इसका वजन 2,148 किलोग्राम है। इसका मुख्य काम लैंडर को चंद्रमा के करीब लेकर जाने का था। अब चूंकि यह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने वाला है तो इसे लैंडर से अब अलग किया जाएगा। वहीं, लैंडर का वजन 1,723.89 किलोग्राम है। इसमें एक रोवर शामिल हैं। रोवर का वजन 26 किलोग्राम है। भारत के तीसरे चंद्र मिशन का मुख्य उद्देश्य लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारना है। इससे पहले लैंडर को ‘डीबूस्ट’ (धीमा करने की प्रक्रिया) से गुजरने की उम्मीद है, ताकि इसे एक ऐसी कक्षा में स्थापित किया जा सके जहां पेरिल्यून (चंद्रमा से निकटतम बिंदु) 30 किलोमीटर और अपोल्यून (चंद्रमा से सबसे दूर का बिंदु) 100 किलोमीटर है। चंद्रयान-2 मिशन में लैंडर पर नियंत्रण खो देने की वजह से उसकी सॉफ्ट लैंडिंग की जगह क्रैश लैंडिंग हो गई थी। इसके बाद लैंडर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया था।
कैसे आगे बढ़ा रहा चंद्रयान-
इसरो ने कहा कि 17 अगस्त को चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल से लैंडर मॉड्यूल को अलग करने की योजना है। चंद्रयान-3 का 14 जुलाई को प्रक्षेपण किया गया था। इसके बाद पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। इसके बाद इसने 6 अगस्त, 9 अगस्त और 14 अगस्त को चंद्रमा की अगली कक्षाओं में प्रवेश किया। इसके साथ ही वह चंद्रमा के और निकट पहुंचता जा रहा है।

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Green Hydrogen: खारे पानी से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की तकनीकी आयेगी काम

जीवाश्म ईंधन की घटती उपलब्धता और इसके इस्तेमाल की वजह से होने वाला बेइंतहा कार्बन उत्सर्जन, दुनिया के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। ग्रीन हाइड्रोजन इन दोनों समस्याओं का एक बेहतरीन समाधान है। लेकिन, खुद इसकी राह में भी कुछ कम चुनौतियाँ नहीं है। ग्रीन हाइड्रोजन एक ऐसा स्वच्छ ईंधन विकल्प है, जिसे जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले बहुत सारे उद्योगों और वाहनों में अपनाया जा सकता है। यह परिवहन, उद्योग, विद्युत उत्पादन जैसे अर्थव्यवस्था के बहुत सारे क्षेत्रों का अकार्बनीकरण (डीकार्बनाएइजेशन) करने में सक्षम है। इसका दूसरा लाभ यह है कि यह नवीकरणीय ऊर्जा के दीर्घकालिक स्टोरेज की दृष्टि से भी काफी उपयुक्त है।

ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन अभी अपने आरंभिक दौर में ही है। लेकिन, दुनिया भर की सरकारें और कारोबारी, कार्बन उत्सर्जन को कम करने को लेकर जो गंभीरता और प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं, वह ग्रीन हाइड्रोजन के अच्छे भविष्य की उम्मीद जगाती है। अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (इरना) का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक बाजार 2.5 खरब डॉलर तक पहुँच सकता है।

इस वर्ष के आरंभ में भारत ने भी राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। इसका लक्ष्य पाँच साल के भीतर घरेलू उपयोग के लिए पचास लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन वार्षिक उत्पादन की क्षमता हासिल करना है। इसे वर्ष 2030 तक सवा लाख मेगावाट तक बढ़ाए जाने का इरादा जताया गया है। अगर भारत यह लक्ष्य प्राप्त कर सका तो जीवाश्म ईंधन के आयात पर होने वाले खर्च को एक लाख करोड़ रुपए तक कम किया जा सकेगा। तब तक देश में ग्रीन हाइड्रोजन का बाजार भी करीब आठ अरब डॉलर का हो चुका होगा।

इस मिशन के माध्यम से भारत स्वयं को ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग एवं निर्यात के वैश्विक केन्द्र तथा मार्केट लीडर के रूप में स्थापित करना चाहता है। अभी इस क्षेत्र में जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश अग्रणी हैं, जो क्रमश: 2017 व 2020 से ग्रीन हाइड्रोजन नीति पर अमल कर रहे हैं।

भारत को अपने राष्ट्रीय हरित ऊर्जा मिशन के माध्यम से करीब आठ लाख करोड़ रुपए का निवेश आने और छह लाख से अधिक नए रोजगारों के सृजन की उम्मीद है। साथ ही इससे हमारे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में हर साल पचास मिलियन मीट्रिक टन की भी कमी आएगी। और, वर्ष 2050 तक देश में कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के कुल 3.6 गीगा टन कम किया जा सकेगा।

अब सवाल यह उठता है कि ‘हरित हाइड्रोजन ‘मिशन’ के इस पूरे परिदृश्य में जब सब कुछ हरा ही हरा है, तो इसमें समस्या कहाँ है? दरअसल, समस्या कई हैं। एक, इसके उत्पादन में बहुत ज्यादा लागत आती है, जिसकी वजह से इसकी कीमत ज्यादा हो जाती है। करीब 5 से 6 डॉलर प्रति किलो। दूसरी, इससे जुड़े सुरक्षा के प्रश्न। हाइड्रोजन एक ज्वलनशील पदार्थ है, जो कभी भी आग पकड़कर दुर्घटना की वजह बन सकता है। ये दोनों वजह हैं, जो लोगों को इसे अपनाने के प्रति हतोत्साहित कर सकती है।

लेकिन, ये तो सामान्य सी चीजें हैं जिनका देर-सवेर कोई न कोई हल खोज लिया जाएगा। असल में, ग्रीन हाइड्रोजन के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा है, इसकी स्वच्छ जल पर निर्भरता। जैसा कि हम जानते हैं, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए सोलर, हवा जैसे रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों का इस्तेमाल कर पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित किया जाता है। इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलाइसिस और इस तरह से प्राप्त हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहते हैं। इसमें ग्रीन हाउस गैसों का शून्य उत्सर्जन होता है।

इस इलेक्ट्रोलाइसिस प्रोसेस के लिए अभी तक जो जल इस्तेमाल किया जाता है, वह स्वच्छ जल होता है। क्योंकि अगर जल अशुद्ध होगा तो वह इलेक्ट्रोलाइसिस की प्रक्रिया को अवरुद्ध कर सकता है या इलेक्ट्रोलाइजर को खराब कर सकता है। इसलिए इसके उत्पादन में शुद्ध जल का उपयोग किया जाता है। औसतन एक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए 9 घन मीटर अर्थात् 9,000 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसका अर्थ है कि पचास लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए हर साल 45 अरब लीटर पानी चाहिए।

दुनिया में करीब 1.1 अरब लोग शुद्ध

और साफ पानी से वंचित हैं। भारत में भी प्रति व्यक्ति शुद्ध जल की वार्षिक उपलब्धता लगातार घट रही है। साल 2001 में यह 18,16,000 लीटर थी, 2011 में घटकर 15,44,000 लीटर रह गई और 2050 तक इसके 11,45,000 लीटर / प्रति व्यक्ति रह जाने की आशंका है। यानि जल संकट की सीमा, 10 लाख लीटर से कुछ ही दूर। ऐसे में 50 लाख टन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए प्रति वर्ष 45 अरब लीटर पानी की व्यवस्था कर पाना एक टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।

लेकिन अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के शोधकर्ताओं ने इस संकट का हल तलाश लिया है। उन्होंने करीब 400 वर्ग सेंटीमीटर के एक ऐसे इलेक्ट्रोलाइजर का प्रोटोटाइप विकसित किया है, जो समुद्र के खारे पानी को इलेक्ट्रोलाइज करके, उससे ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में सक्षम है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस उपकरण से हर घंटे एक लीटर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है। इस पर पारंपरिक इलेक्ट्रोलाइजरों की तुलना में लागत कम ही आएगी। यह सोलर एनर्जी से काम करता है, इसलिए हाइड्रोजन उत्पादन में बिजली के इस्तेमाल पर होने वाले खर्च में भी कमी आएगी।

अभी यह तकनीक अपनी शैशव अवस्था में ही है। हमारे यहाँ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस तरह की क्रान्तिकारी तकनीकों को मीडिया हाइप बहुत ज्यादा मिलता है। लेकिन, आम जिंदगी में चलन में आने में उन्हें कई साल लग जाते हैं। कई बार तो वे सामने आती भी नहीं हैं। और यहाँ तो हमसे पहले भी कई लोग बहुत सक्रिय हैं।

जिस तरह हम समुद्र के पानी से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए काम कर रहे हैं, दुनिया के कई और देश इसी उद्देश्य को लेकर अपने अपने ढंग से काम कर रहे हैं। क्योंकि स्वच्छ जल की कम उपलब्धता सिर्फ हमारी ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की समस्या है। वहीं धरती के दो तिहाई हिस्से पर समुद्र का पानी हिलोरे मार रहा है, जिसका इस्तेमाल ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने में हो सकता है।

इसी साल फरवरी में मेलबर्न के शोधकर्ताओं द्वारा भी एक बेहद सस्ते उत्प्रेरक, कोबाल्ट ऑक्साइड का इस्तेमाल कर समुद्र के खारे पानी को, बिना किसी प्री-ट्रीटमेंट के हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने में सफलता हासिल करने की खबर आई है। अप्रैल में अमेरिका की स्टैनफोर्ड, मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन और ओरेगान यूनिवर्सिटी के रिसर्चर दोहरी-झिल्ली प्रणाली और विद्युत की मदद से समुद्री पानी की फनलिंग करके हाइड्रोजन का उत्पादन करने में सफल रहे हैं।

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