भोपाल की हमीदिया रोड पर शहर में सबसे ज्यादा ध्नवि प्रदूषण है। मध्यप्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने 6 महीने (1 अप्रैल से 30 सितंबर) की रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, हमीदिया रोड पर पिछले 6 महीने में अधिकतम अगस्त में एवरेज 68 डेसिबल तक ध्नवि प्रदूषण दर्ज किया गया है। यह डेसिबल शहर के इंडस्ट्रियल एरिया से भी अधिक है। सबसे कम ध्नवि प्रदूषण गोविंदपुरा और बैरागढ़ में दर्ज किया गया। यहां पर यह अगस्त में 50 से भी कम डेसिबल पर दर्ज हुआ।
प्रदूषण का कारण
हमीदिया रोड पर बहुत ज्यादा ट्रैफिक, रेलवे स्टेशन और कमर्शियल एक्टिविटी रहती है। इस रोड पर पीसीयू (पैसेंजर कार यूनिट) आम दिनों में 8 से 10 हजार हैं। मतलब पीक आॅवर में यहां से प्रति घंटा 8 से 10 हजार गाड़ियां गुजरती हैं। डीजे-बैंड भी लगातार गुजरते रहते हैं।
हाल ही में हुई बच्चे की मौत
डीजे की तेज आवाज से एक 13 साल के बच्चे की मौत का मामला सामने आ चुका है। 14 अक्टूबर को समर बिल्लौरे (13) मां दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए जा रहे चल समारोह में डीजे पर डांस कर रहा था। परिवार का आरोप है कि जैसे ही डीजे का साउंड तेज हुआ, समर बेहोश हो गया। उसे नजदीकी अस्पताल लेकर गए। यहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
पर्यावरणविद् सुभाष सी पांडे कहते हैं कि नॉइस लेवल का एवरेज लगातार 55 डेसिबल से ज्यादा है, तो कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। 5 साल से छोटे बच्चों और 75 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्गों में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज की संभावना बढ़ेगी। इलाके में रहने वाले लोगों में चिड़चिड़ापन भी बढ़ेगा। यहां पर सरकार को वॉर्निंग बोर्ड लगाने चाहिए। इस रिपोर्ट को दिन और रात के आधार पर बनाना चाहिए।
एम्स भोपाल के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. अंजन साहू का मत है कि लंबे समय तक तेज ध्वनि के वातावरण में रहने से सुनने की क्षमता में कमी हो जाती है। लंबे समय तक 70 से 80 डेसिबल तक नॉइस में रहने से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। चिड़चिड़ापन, अवसाद ग्रस्त जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।