इंदौर। सोमवार को एक तरफ लोकतंत्र की कसौटी पर मतदाता थे तो दूसरी तरफ सीबीएसई के रिजल्ट ने स्टूडेंट्स की धड़कनें बढ़ा रखी थीं। स्टूडेंट्स तो बाजी मार गए, लेकिन मतदान की परीक्षा में हम मात खा गए। हद तो यह है कि इंदौर में बमुश्किल 60.53 प्रतिशत मतदान हुआ है। ये आंकड़ा सोमवार को जिन आठ सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें यह सबसे कम है। सबसे ज्यादा 75.79 प्रतिशत वोटिंग खरगोन में हुई है, जहां सोमवार को अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक था। इंदौर का तापमान 38.3 डिग्री था, इसीलिए कम वोटिंग के लिए यह कहना गलत है कि गर्मी बहुत थी।
इंदौर…जिसे कोई एज्यूकेशन हब कहता है… कोई मेडिकल हब… किसी के लिए आईटी हब है… तो किसी के लिए व्यापारिक नगरी… मप्र के सबसे ज्यादा कॉलेज और सबसे ज्यादा स्कूल यदि किसी एक शहर में है तो वह है इंदौर…। चुनाव आयोग ने अपील की…। जिला प्रशासन ने जनजागरूकता अभियान चलाए। विज्ञापन लगाए। सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं ने समझाया। 56 दुकान एसोसिएशन ने फ्री पोहा-जलेबी खिलाया…। मतदान केंद्रों पर शामियाने सजाए…। सुविधाएं जुटाई…, फिर भी जनाब वोट डालने नहीं पहुंचे, इसीलिए सोमवार को मप्र की जिन आठ संसदीय सीटों पर मतदान हुआ है, उनमें इंदौर जैसा प्रदेश का सबसे स्मार्ट शहर बुरी तरह पिछड़ गया। आंकड़ों की मानें तो इंदौर में 60.53% प्रतिशत मतदान हुआ है, जो 2019 के मुकाबले 8.77 % कम है।
हालांकि मतदान कम होने की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस और भाजपा दोनों हैं… जो पहले भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी के सामने मजबूत केंडिडेट नहीं उतार सकी… अक्षय कांति बम पर भरोसा जताया। वो बम जो नाम वापसी वाले दिन भाजपा नेताओं के दबाव में ही फट गया। भाजपा नेताओं ने दिनदहाड़े बम के पंजे में कमल थमाकर उन्हें भाजपाई बना दिया। बम ने रण छोड़कर इंदौर के मतदाताओं को विकल्पविहीन कर दिया था। हालांकि बाद में कांग्रेस नेताओं ने ‘नोटा’ की मार्केटिंग की, लेकिन जब चुनाव एकपक्षीय हो ही चुके थे तो फिर क्या नोटा और क्या…!
सोमवार को बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की नजरें % पर थीं। एक तरफ लोकतंत्र की परीक्षा थी। दूसरी तरफ सीबीएसई का रिजल्ट था। रिजल्ट में नंबरों का आंकलन करके बच्चों का भविष्य आंका जाता रहा, लेकिन वहीं मां-बाप मतदाता के रूप में परीक्षा देने से बचते नजर आए,इसीलिए हर मामले में अव्वल हमारा इंदौर लोकतंत्र की परीक्षा में फिसड्डी रह गया।