इंदौर से लगभग 40 किमी दूर महू मंडलेश्वर मार्ग पर अष्टभुजाधारी माता पार्वती का अति प्राचीन मंदिर स्थित है। देवी का यह मंदिर मालवा एवं निमाड़ की सीमा के बीच खूबसूरत वादियों में है। प्राचीन इतिहास से जुड़ा यह मंदिर अपने साथ कई रोचक तथ्यों को भी संजोए हुए है, लिहाजा दूर दराज से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु मंदिर में माता के दर्शन करने आते है। क्षेत्र होलकर राज्य की अंतिम सीमा माना जाता था। यहां बनाया गया जाम गेट इन सीमाओं को जोड़ता हैं और मालवा एवं निमाड़ का बॉर्डर बना हुआ है।
जंगलों के बीच से निकलने वाली पतली और टेढ़ी सड़कों से सैर करते हुए निकलना और भी खूबसूरती भरा होता है। इन्ही चेक प्वाइंट के ऊपर पहाड़ी पर माता पार्वती का मंदिर है जो लगभग 3000 फिट की उंचाई पर बना है। मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर विभिन्न धार्मिक आयोजन-अनुष्ठान हो रहे हैं। मंदिर के ऊपर से पहाड़ियां, घाटी बेहद खूबसूरत और रोमांचक नजर आते है। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है, स्कंद पुराण के अनुसार माता के इस प्रतिमा की स्थापना देवराज इंद्र ने की थी। स्थापित प्रतिमा में माता महिषासुर का वध करती नजर आ रही है। इसीलिए माता को महिषासुर मर्दनी भी कहा जाता है। यह प्रतिमा पत्थर से निर्मित है। करीब सवा फिट की है। मान्यता है कि माता दिन में तीन बार अपना रूप भी बदलती है।