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‘हिंदुत्व’ से हड़बड़ाहट में विपक्ष मुस्लिम प्रत्याशियों से उठा भरोसा

सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए मुस्लिम वर्ग बड़ा मतदाता रहा है। हालांकि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा को मिल रही सफलता ने इन पार्टियों का मुस्लिमों के प्रति मोह भंग किया है। इसका अंदाजा 2014 से 2024 के मुकाबले घटी इन दलों के मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या से लगाया जा सकता है। हालत यह है कि 40 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में भी इन दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों को नकार दिया। शायद अब यह दल मान चुके हैं कि मुस्लिम को टिकट देने से हिंदु वोट कम मिलते हैं। वहीं हिंदु को टिकट दिया तो परम्परागत मुस्लिम वोट तो मिलना ही हंै, हिंदु वोट भी मिलेंगे।
हमारे इस एनालिसिस का मकसद हिंदू-मुस्लिम को अलग करके देखना नहीं है। ये सिर्फ विश्लेषण है जो बताता कैसे सियासी दल अपने फायदे के लिए हिंदुओं और मुसलमानों का इस्तेमाल करते हैं। एआईएमआईएम यानि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी दावा करती है कि वो मुस्लिमों की आवाज है। कांग्रेस कहती है कि वो हिंदुओं और मुसलमान दोनों की आवाज उठाते हैं। आरजेडी बिहार में मुस्लिम-यादव(एमवाय)फैक्टर को आजमाती है।
भारत की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं के वोटों को निर्णायक माना जाता है। धार्मिक आबादी के हिसाब से देश में मुस्लिम दूसरे नंबर पर आते हैं। इन वोटों की क्या अहमियत होती है इसे देश का हर सियासी दल समझता भी है। कोई हंसाकर तो कोई डराकर मुस्लिमों के वोट लेना चाहता है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजपार्टी, टीएमसी, आरजेडी जैसे तमाम सियासी दलों को उम्मीद है कि मुस्लिम उनकी नाव को पार लगा सकते हैं, लेकिन जब इन पार्टियों का मुस्लिमों को टिकट देने का नंबर आता है तो सब शून्य हो जाते है। हिंदुत्व की लहर को देखते हुए 2024 के आम चुनाव में इंडी गठबंधन के दल भी मुस्लिमों का खुला समर्थन करने से बच रहे हैं। इसीलिए 40 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले जिस मुरादाबाद ने अब तक 11 बार मुस्लिम नेताओं को चुनकर संसद भेजा, वहां से इस बार सपा ने सांसद डा. एसटी हसन का टिकट काटकर रुचि वीरा को गठबंधन प्रत्याशी बनाया। मुस्लिम आबादी वाले बिजनौर से कोई मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं है। यही हाल मुजफ्फरनगर, मेरठ और बागपत सहित कई उन सीटों का भी है।
मुजफ्फरनगर से भाजपा के संजीव बालियान मैदान में हैं तो करीब पांच लाख मुस्लिम आबादी के बावजूद सपा ने हरेंद्र मलिक और बसपा ने दारा सिंह प्रजापति को टिकट दे दिया। चार से पांच लाख मुस्लिम मतदाताओं वाली बिजनौर सीट से रालोद ने चंदन चौहान को गठबंधन प्रत्याशी बनाया सपा ने दीपक सैनी और बसपा ने चौ. वीरेंद्र सिंह को उतार दिया।
टिकट न देंगे तो भी वोट देंगे ही मुस्लिम- सियासी समीक्षक कहते हैं सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे दल अब इस आशंका से डरने लगे हैं कि मुस्लिमों को ज्यादा टिकट देने से भाजपा इसे मुस्लिम तुष्टिकरण के रूप में प्रचारित कर ध्रुवीकरण न करा दे। इस पर मुस्लिम मतदाताओं के रुख के प्रश्न पर वह कहते हैं कि यह तीनों ही दल जान चुके हैं कि प्रतिनिधित्व न भी दिया जाए तो उनके लिए वोट बैंक बन चुका मुस्लिम जाएगा कहां?

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