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मोदी की गारंटी में भी तड़प रही ‘विकास की मछली’!

2024 के लोकसभा चुनाव की शहनाई वैसे तो बज चुकी है, अब तो पहले चरण का चुनाव भी होने वाला है। तकरीबन हर राजनीतिक पार्टी ने अपने बचे-खुचे सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तय करने के साथ ही आधिकारिक ऐलान भी कर दिया है। यूपी की बात करें तो पूर्वांचल की एक ऐसी सीट रही जिसको लेकर हर कोई ऊधेड़बुन में रहा कि आखिर में भाजपा के बाद अब सपा-कांग्रेस गठजोड़ किस उम्मीदवार को टिकट देगा। अंत में मछलीशहर लोस सीट पर सपा ने अपनी ही पार्टी के पूर्व सांसद रहे और मौजूदा समय में इसी सीट के विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक तूफानी सरोज की बेटी प्रिया सरोज की उम्मीदवारी पर अपनी राजनीतिक मुहर लगाई। जबकि बीजेपी ने लगातार दूसरी बार इस सीट से वर्तमान सांसद बीपी सरोज को चुनावी मैदान में उतारा और वहीं बसपा ने पंजाब कॉडर के पूर्व आईएएस रहे कृपाशंकर सरोज को हाथी चुनाव चिन्ह सौंपकर अपनी दावेदारी पेश की।
2014 से लेकर अब तक बीजेपी का ही इस सीट पर कब्जा रहा हैं। इस क्षेत्र के कुछ वरिष्ठजनों की मानें तो पीएम मोदी के वाराणसी संसदीय सीट से सटे होने के बावजूद मछलीशहर क्षेत्र में विकास की मछली आज भी तड़पती हुई नजर आ रही। जौनपुर और वाराणसी क्षेत्रों को मिलाकर मछलीशहर सुरक्षित संसदीय सीट को बनाया गया है। जातीय आंकड़ों पर गौर करें तो यहां पर सबसे अधिक पासी यानी सरोज, सोनकर, धोबी, निषाद और उसके बाद यादव, मुस्लिम, ठाकुर, बनिया, वर्मा आदि अन्य जातियां शामिल हैं। मौजूदा राजनीतिक परिवेश में देखें तो बीजेपी, सपा और बसपा ने इस बार के चुनाव में एक ही वर्ग यानी सरोज-पासी समुदाय से जुड़े उम्मीदवार को उतारा है तो मुकाबला त्रिकोणीय होना लाजिमी है। यहां के स्थानीय जानकारों की मानें तो चूंकि मछलीशहर सीट को यहां पर न तो जौनपुर शहरी सीट और न ही वाराणसी सीट से किसी प्रकार का पॉलिटिकल बैकअप, नहीं मिल पाता तो सदन में इनके चुने गये जनप्रतिनिधियों की जनसमस्या को लेकर सुनवाई भी समय पर नहीं हो पाती है। यहां पर न तो अब तक किसी प्रकार का औद्योगिक विकास हो पाया और न ही कोई अन्य सतत विकास दिखा।
इस क्षेत्र के अधिकांश लोग खेती-बाड़ी पर निर्भर हैं। परंपरागत कल-कारोबार से जुड़कर जैसे-तैसे करके अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। यहां के ज्यादातर युवा काम की तलाश में महाराष्ट्र-मुंबई-पुणे, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गाजियाबाद या कोलकाता जैसे शहरों की ओर पलायन को मजबूर रहते हैं।
हालांकि यहां पर शिक्षा का उन्नति तो दिखती है, मगर वो भी इस रूप में की कि यहां पर कुछेक शिक्षण संस्थानों को छोड़ दिया जाये तो अधिकांश प्रतियोगी और एकेडमिक छात्र-छात्रायें यूनिवर्सिटी की ओर उच्च और शोधपरक पठन-पाठन के लिये निकल जाते हैं…और यदि सफल हो गये तो फिर इक्का-दुक्का ही यहां पर लौटकर आते हैं। ऐसे में मछलीशहर संसदीय क्षेत्र में शैक्षिक बे्रन ड्रेन भी प्रचलन कहीं देखने को मिलता है। रेलवे, और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी शहर संसदीय सीट को लेकर पूर्व और वर्तमान में कई घोषणायें होती आई हैं। मौजूदा हाल में जमीनी हकीकत इससे कहीं जुदा है।

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