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इंदौर नगर निगम में 28 करोड़ का फर्जी बिल घोटाला मामला

नगर निगम के ड्रेनेज विभाग में बिना काम किए 28 करोड़ के फर्जी बिल का जो घोटाला सामने आया है… दरअसल वह करीब 5 माह पहले ही उजागर हो गया था, लेकिन पुख्ता सबूत नहीं होने पर उस समय कार्रवाई नहीं की गई। तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह ने मामला संज्ञान में आने के बाद अपर आयुक्त वित्त देवधर दरवई को गोपनीय जांच का जिम्मा सौंपा था। घोटले की तह तक जाने और आरोपियों के कारनामे को उजागर करने के लिए जांच में काफी सतर्कता बरती गई। गोपनीय जांच के बाद घोटाले की परतें खुलते गईं।
तत्कालीन निगमायुक्त को लगभग पांच माह पहले निगम के ड्रेनेज विभाग से जुड़े फर्जी बिलों के संबंध में शिकायत मिली थी। मामला संज्ञान में आने के बाद निगमायुक्त ने अपर आयुक्त वित्त को मामला सौंपकर पता लगाने को कहा। उस समय इस मामले में इसलिए गोपनीयता व अतिरिक्त सावधानी बरती गई, ताकि फर्जी बिल तैयार करने वाले कर्ताधर्ता व इनसे जुड़े निगम के ड्रेनेज विभाग के संबंधित अधिकारी और कर्मचारी सतर्क न हो जाएं। घोटाले की तह तक जाने के लिए मामले को पकने दिया गया। तीन-चार माह तक मामले की ड्रेनेज विभाग से लेकर आॅडिट विभाग तक गहन जांच की गई। बिल, फाइल व अन्य दस्तावेजों को बारीकी से खंगाला गया। गोपनीय तरीके से जांच का काम किया गया। जानकारी व पूछताछ के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि सम्बन्धितों को किसी प्रकार की शंका न हो। जब यह पक्का हो गया कि वाकई में बिलों में फर्जीवाड़ा हुआ है तो मौजूदा निगमायुक्त शिवम वर्मा को अवगत कराया गया। उनके निर्देश पर पांच फर्मों के कर्ताधर्ताओं के खिलाफ पुलिस थाना एमजी रोड में तीन दिन पहले एफआईआर दर्ज करवाई गई।

प्रारंभिक जांच में पता चल गया था फर्जीवाड़ा – हर्षिका सिंह, तत्कालीन निगमायुक्त
पूर्व निगमायुक्त हर्षिका सिंह ने ‘हिंदुस्तान मेल’ को बताया कि प्रारंभिक जांच के बाद ही यह बात सामने आ गई थी कि पूरा मामला बड़े फर्जीवाड़े का है। बिलों को देखकर शक होने लगा था। पुराने बिलों की जांच कराई गई और शंका होने पर भुगतान नहीं होने दिया गया। हर्षिका सिंह ने बताया कि हस्ताक्षर के लिए हर सीट पर एक ही पेन का इस्तेमाल किया गया था। इससे शक और पक्का हो गया था। जांच को लेकर काफी सतर्कता व सावधानी बरती गई, ताकि इसकी तह तक पहुंचा जा सके। मामले में आॅडिट विभाग को फटकार भी लगाई गई थी।
निगम के नेता प्रतिपक्ष
ने लगाए आरोप
मामले में नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष चिन्टू चौकसे ने निगम के कई अधिकारियों व कर्मचारियों के शामिल होने का आरोप लगाया है। बिना अफसरों की सांठगांठ से घोटाले होना संभव नहीं है। उन्होंने ड्रेनेज विभाग के अफसर सुनील गुप्ता को आरोपों के कटघरे में खड़ा किया है। चौकसे ने नाला टैपिंग में भी बड़े घोटाले होने की बात कही है।

निगम आयुक्त शिवम वर्मा द्वारा मामले में निगम के अधिकारियों अथवा कर्मचारियों की संलिप्तता होने और ई-नगर पालिका मे प्रविष्टियों के संबंध में आईटी सेल से जांच कराने हेतु अपर आयुक्त सिद्धार्थ जैन की अध्यक्षता में जांच समिति का गठन किया गया है। गठित जांच समिति में अपर आयुक्त लेखा देवघर दरवई, आरएस देवड़ा सहायक यंत्री, रमेशचंद्र शर्मा सहायक लेखा अधिकारी, अभिनव राय प्रभारी अधिकारी आईटी सेल, आशीष तागड़े सहायक लेखापाल, रूपेश काले सहायक लेखापाल शरीक किए गए हैं। उक्त समिति द्वारा 15 दिन में जांच करके जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। इस घोटाले में निगम अफसरों की मिलीभगत होने से इनकार नहीं किया जा रहा है। जानकारों के अनुसार बिना मिलीभगत से घोटाला होना संभव नहीं है।

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