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शिव और शक्ति के मिलन का संयोग है ‘महाशिवरात्रि’

शिव: शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि।
आदि शंकराचार्य विरचित सौंदर्यलहरी की यह आरंभिक पंक्तियॉं कहती हैं कि ह्लशक्ति के बिना शिव, अधूरे हैं तथा ऐसी परिस्थिति में उनमें स्पंदन-मात्र की सामर्थ्य भी नहीं है।ह्व भगवान शिव की परम चेतना को सामर्थ्य और गति सौंपनी वाली यह भी मां ह्लशक्तिह्व हैं। आज महाशिवरात्रि भी है और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी। ऐसे में इसे भारतीय दर्शन में शिव और शक्ति के संगम की व्याख्या का सबसे बेहतर अवसर कहा जा सकता है। जिस तरह शिव के बिना सृष्टि अधूरी है, वहीं शक्ति के बिना शिव को अधूरा कहा गया है। जो शिव के दर्शन को जानता है, वह शक्ति यानी नारी के महत्व से परिचित है। करूणा के सागर भगवान भोलेनाथ के स्वरूप से शक्ति के महत्व को समझा जा सकता है, इसीलिए शिव-शक्ति के संयोग में अर्धनारीश्वर स्वरूप की भी पूजा की जाती है।
भारतीय पंचांग के अनुसार वैसे तो साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं लेकिन फाल्गुन मास की शिवरात्रि का महत्व विशेष है, क्योंकि इसी दिन शिव और शक्ति का मिलन हुआ था, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। देवाधिदेव महादेव करुणा के सागर हैं, अति शीघ्र प्रसन्न होकर अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष को देने वाले हैं। अजन्में, अविनाशी, पालन और संघारक हैं। प्रकाश के भी प्रकाश अद्वैत चिदानंद मूर्ति एवं लिंग स्वरूप हैं। शिव का अर्थ मंगलमय एवं मंगलदाता है। इनके मस्तक पर स्थित चंद्रमा जगत के संतुलन का प्रतीक है, जहां से भक्ति रूपी गंगा सदा प्रवाहमान है। इनके तीन नेत्र सूर्य, चंद्र एवं अग्नि हैं, जो आत्मा, मनन एवं विवेक के प्रतीक हैं। गले में सर्पों का माला सभी को गले लगाने का प्रतीक है। हाथ में त्रिशूल त्रिविध ताप सतो गुण, रजो गुण एवं तमो गुण का प्रतीक है। नंदी इनका वाहन है जो धर्म का प्रतीक है। भस्म इनकी अंगराग है।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री मां पार्वती के साथ विवाह के उपलक्ष्य में महाशिवरात्रि के दिन को शिव विवाह के रूप में मनाते हैं। शिव-शक्ति के मिलन से ही जगत चलता है। शक्ति के बिना सृष्टि का सृजन संभव नही है। शिव व शक्ति के बिना कुछ भी संभव नही है वही परम् ब्रह्म हैं। सृष्टि के कर्ता भगवान शिव का अस्तित्व शक्ति के बिना अधूरा माना जाता है। मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य बनाए रखने से ही सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से होता है।
परम चेतना को सामर्थ्य और गति सौंपनी वाली यह ह्लशक्तिह्व भारतीय दर्शन में स्त्री-तत्व का सबसे खूबसूरत प्रतीक है। नारी ह्यशक्तिह्ण की प्रतीक है। हमारी सनातन परंपरा में नारी पूजनीय है। शिवरात्रि का अनुष्ठान इसी का द्योतक है की शक्ति के साथ शिव पूर्ण हैं। हमें आवश्यकता है कि हम अपने धर्म और परंपरा के अनुसार नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति का वाहक बनाएं, उनमें स्त्री के प्रति सम्मान और स्वावलंबन की भावना का प्रसार करें।
शिव से सीखें जीवन का चिंतन- शिव का यह अर्धनारेश्वर स्वरूप हमें नारियों को समाज में समान स्थान देने और उन्हें अपने बराबर मानने की सीख देता है। ब्रह्मा को उत्पत्ति, विष्णु को पालन और शिव को विनाश के लिए जाना जाता है, यहां आशय यह है कि अगर कोई बुराई समाज में व्याप्त है तो उसका विनाश करें। शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी भी परिस्थिति से खुद को बाहर रखकर सोचना आसान नहीं होता लेकिन शिव हमेशा ध्यान की मुद्रा में रहते हैं, इसलिए वे शांत हैं और नियंत्रित भी। उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता।
समुद्रमंथन से विष बाहर आया तो सभी ने कदम पीछे ले लिए, ऐसे में महादेव शिव ने विष को ग्रहण कर नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल दिया और इस संसार को बचाया। शिव का संपूर्ण रूप देखकर यह पता चलता है कि वे हमेशा समान भाव में रहते हैं और सभी को समान नजर से देखते हैं। उनके विवाह में देव भी पहुंचे और भूतों की मंडली भी लेकिन सभी को समान सम्मान दिया गया।

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