आज (8 मार्च) को शिवरात्रि है और इस दिन शिवजी की पूजा के साथ ही उनकी कथाएं पढ़ने-सुनने की भी परंपरा है। शिवजी कहानियों में छिपे संदेश को जीवन में उतार लिया जाए तो हमारी सभी समस्याएं खत्म हो सकती हैं। जानिए… एक ऐसी कथा, जिसमें बताया गया है कि पति-पत्नी के बीच भरोसा नहीं होगा तो क्या हो सकता है… रामायण में रावण ने देवी सीता का हरण कर लिया था। श्रीराम लक्ष्मण के साथ सीता की खोज में जंगल-जंगल भटक रहे थे। जब ये घटना हो रही थी, उस समय शिवजी और देवी सती राम कथा सुनकर लौट रहे थे। शिवजी ने दूर से ही श्रीराम को देख लिया। शिवजी श्रीराम को अपना आराध्य देव मानते हैं, इसलिए उन्होंने दूर से ही रामजी को प्रणाम किया। शिवजी देवी सती से भी रामजी को प्रणाम करने के लिए कहा, लेकिन सती ने श्रीराम को रोते हुए देखा तो उन्हें इस बात की शंका हो गई कि क्या सच में ये भगवान हैं! सती ने शिवजी से कहा कि ये भगवान कैसे हो सकते हैं, ये तो रो रहे हैं, ये एक सामान्य राजकुमार हैं। शिवजी ने सती को समझाते हुए कहा कि आप शंका न करें, ये सब रामजी की लीला है। शिवजी के कहने के बाद भी सती ने उनकी बात पर भरोसा नहीं किया। देवी ने शिवजी की बात नहीं मानीं और रामजी की परीक्षा लेने चली गईं। देवी सती ने सीता का रूप धारण किया और श्रीराम के सामने पहुंच गईं। श्रीराम ने देवी सती को तुरंत पहचान लिया और उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि देवी आप अकेले इस वन में क्या कर रही हैं, शिवजी कहां हैं? ये बात सुनते ही सती समझ गईं कि ये सच भगवान ही हैं। देवी को अपनी गलती का अहसास हो गया था। देवी लौटकर शिवजी के पास पहुंच गईं। शिवजी ने देवी को देखकर पूछा कि आप आ गईं, क्या आपने रामजी की परीक्षा ले ली?
शिवजी के इस प्रश्न पर सती ने झूठ बोल दिया कि मैंने भगवान राम की परीक्षा नहीं ली, मैं भी उन्हें प्रणाम करके लौट आई हूं।
शिवजी को सती का स्वभाव मालूम था कि देवी इतनी आसानी से किसी बात भरोसा नहीं करती हैं। शिवजी ने ध्यान लगाया तो उन्हें पूरी बात मालूम हो गई। इसके बाद शिवजी ने सती से कहा कि आपने मुझसे झूठ बोला और मेरे समझाने के बाद भी आपने आराध्य श्रीराम की परीक्षा ली। आपने अपनी इस देह से मेरी मां सीता का रूप धारण किया है तो अब से आपका मानसिक त्याग करता हूं। इसके बाद शिवजी और सती का वैवाहिक जीवन बिगड़ गया था।
प्रसंग की सीख
इस किस्से की सीख यह है कि पति-पत्नी के बीच आपसी भरोसा अटूट होना चाहिए। जब वैवाहिक रिश्ते में भरोसा टूट जाता है तो ये रिश्ता ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है।
पेड़-पौधे साक्षात् नीलकंठ हैं
समुद्र मंथन से निकले जहर को पीकर भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। हमारे आसपास के पेड़-पौधे भी रोजाना मानवजन्य प्रदूषण रूपी जहर को सोखकर नीलकंठ हो गए हैं। पेड़-पौधों की पत्तियां विषैली गैसों को सोखकर तथा कणीय पदार्थों को एकत्रकर वायु को साफ करने में सहायक होती हैं। पेड़ों के तने तथा शाखाओं पर फैली छाल भी यही कार्य करती हंै। बड़ी पत्तियों वाले सदाबहार पेड़ यह कार्य ज्यादा दक्षता से करते हैं; जैसे- आम, आसापालव, कदम्ब एवं जामुन आदि। देश-विदेश में किए गए कई अध्ययन दर्शाते हैं कि पेड़-पौधों की अधिकता वाले क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता बेहतर होती है। नल घांस, जलकुम्भी एवं कई अन्य जलीय पौधे प्रदूषित जल को भी काफी शुद्ध कर देते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पौधों के महत्व को समझना समयोचित होगा।
डॉ. ओपी जोशी, वरिष्ठ पर्यावरणविद्