जिसकी जांच के बाद अतिविशिष्ट जिला पंजीयक ने रिपोर्ट बनाकर कार्रवाई की अनुशंसा की थी। इससे पहले 2018 में भी ईओडब्ल्यू उज्जैन ने भ्रष्टाचार के मामले में एक केस दर्ज किया था, जिसमें भी प्रमिला गुप्ता आरोपियों की सूची में शामिल थी। बताया जा रहा है कि मामला एमआर-11 का है, जो वार्ड-31 में आता है, जिसकी रजिस्ट्री शॉपिंग कॉम्पलेक्स स्थित पंजीयक कार्यालय में होती है, जहां प्रमिला गुप्ता उप-पंजीयक के तौर पर पदस्थ है। यहां एक प्रोजेक्ट से जुड़े दो-तीन मामलों में पक्षकारों ने रजिस्ट्री कराई थी। उनकी रजिस्ट्री हुई, लेकिन उन्हें पंजीकृत दस्तावेज लौटाए नहीं गए।
14 फरवरी को इसकी पहली शिकायत इंदौर वरिष्ठ जिला पंजीयक डॉ. अमरेश नायडू से लेकर भोपाल महानिरीक्षक तक को की गई थी। मुख्यालय ने नायडू को जांच के आदेश दिए। प्रतिवेदन मांगा। तमाम तथ्यों की जांच करके नायडू ने अपना प्रतिवेदन 27 फरवरी को मुख्यालय भेज दिया। इसी प्रतिवेदन के आधार पर बुधवार को महानिरीक्षक ने इंदौर-3 की उप पंजीयक गुप्ता को निलंबित कर दिया।
क्यों नहीं दिए दस्तावेज- बताया जा रहा है कि रजिस्ट्री होने के बाद जिस सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से रजिस्ट्री होती है उसी को रजिस्ट्री की कॉपी दी जाती है। कॉपी देने से पहले रजिस्ट्री के बदले पैसे देना पड़ते हैं। 2 हजार रुपए से लेकर 5 हजार रुपए तक। रकम काम के आधार पर बड़ी भी हो सकती हैं। जब तक पैसा नहीं मिलता, अमुमन दस्तावेज दिए नहीं जाते।
पहले भी दर्ज हो चुका है केस..
30 अक्टूबर 2018 को ईओडब्ल्यू ने ढांचा भवन क्षेत्र स्थित सीलिंग की दो बीघा सरकारी जमीन पर काटी गई सुंदरनगर कॉलोनी को लेकर भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया था। जिसमें पटवारी, तहसीलदार, तीन उप पंजीयक (प्रमिला गुप्ता, शैलेंद्र दंडोतिया और प्यारेलाल सोलंकी) सहित आठ पर केस दर्ज हुआ था। आरोप थे कि इन्होंने जानबुझकर रजिस्ट्री की। इसके बाद भी इन्हें इंदौर जैसी महत्वपूर्ण जगह भेजकर डिपार्टमेंट ने अघोषित इनाम दे दिया।