सांस्कृतिक आभूषणों (तागली, कमरबंद, हाथ कड़े, रमझोल, पायल) व अलग-अलग रंगों वाली रंग-बिरंगी पोशाखें पहने युवतियां, दूसरी ओर गमछा/पगड़ी बांधे बाँसुरी पर तान सुनाते, अलहड़ मस्ती में कुर्राट देते युवक। और फिर क्या बच्चे, क्या बुढ़े, क्या युवा, क्या स्त्री, क्या पुरूष हर कोई अपनी ही मस्ती में थिरकता हुआ! कपोल कल्पित सी रंग बिरंगी दुनिया की यह तस्वीर देश के आदिवासी भील समुदाय के गढ़ मध्यप्रदेश के झाबुआ, अलीराजपुर, धार, बड़वानी, और खरगोन की आदिवासी भील जनजाति के एक खास हाट (बाजार) ह्लभगोरिया हाटह्व का है जिसे स्थानीय भाषा मे ह्लभोंगर्या या भोंगर्योह्व कहा जाता हैं। उपरोक्त क्षेत्रों के अलावा गुजरात और राजस्थान की मध्यप्रदेश की राज्यवर्ती सीमा से लगे क्षेत्रों में भी भगोरिया लगता हैं. जहाँ आदिवासी भील जनजाति निवास करती है। वक्त वक्त पर भील जनजाति निवासरत् इस क्षेत्र में भील प्रदेश बनाने की मांग उठती रही है।
रबी की फसल की कटाई के बाद व होली के त्यौहार से ठीक एक सप्ताह पहले स्थानीय साप्ताहिक बाजार वाले दिन के अनुसार लगता हैं। इस हाट में खुशी का माहौल इसलियें भी रहता हैं क्योंकि सारे कृषि कार्य समाप्त हो जाते हैं। यहां पर उल्लेखनीय है कि भील जनजाति कृषि पर निर्भर होती हैं। भगोरिया हाट में रंग- गुलाल के साथ माझम-काकणी (शक्कर से बनी विशेष मिठाई), चने, जलेबी, बुंदी, बुंदी के लड्डु, अंगूर, गन्ने, शकरकंद, होली पूजन सामग्री और सेव की खूब खरीददारी होती हैं। ज्ञात हो कि देशभर में खूब खायीं जाने वाली सेव इन्हीं भीलों की देन हैं जिसे पहले ह्यभीलड़ी सेवह्ण कहा जाता था। और पान तो इस भगोरिया हाट की पहचान ही बन चुका है। आदिवासी समुदाय फागुन माह की पूर्णिमा (होलीका दहन) से ठीक एक महीने पहले माघ माह की पूर्णिमा पर होलिका स्थापना करते है, जिसे ह्लडांडा गाढ़नाह्व कहा जाता है। इसकी स्थापना के बाद आदिवासी समाज अगले चैत्र मास की नवमी तक विवाह (मांगलिक कार्य) नहीं करते है।
दिलचस्प इतिहास
भोंगर्या पर लिखी अनेकों किताबों का अध्ययन और पूर्वज बताते हैं कि भोंगर्या राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। उस समय भील राजा कसुमर (पहले भील राजा) और बालून ने अपनी राजधानी भगोर (भगोर रियासत) में विशाल मेले और हाट का आयोजन (1000ई-1015ई) के बीच करना शुरू किया था। उस वक़्त झाबुआ अंचल में महज 05 रियासतें थी। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भोंगर्या कहना शुरू हुआ। इस बीच कुछ लोगों द्वारा यह अपवाह फैलाई जाने लगी कि भगोरिया में युवक-युवतियाँ अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं. यह उत्सव आदिवासी वेलेंटाइन डे है, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नही होता, सरासर झूठ है। मैं यह दावे से इसलिये कहता हूं क्योंकि स्वयं इस आदिवासी भील समुदाय का हिस्सा हूं, क्षेत्र से संबंध रखता हूं और विषय के संबंध में मैंने स्वयं ही शोध किया है. हां लेकिन यह जरूर है कि हाट में मित्रों- रिश्तेदारों को पान खिलाने का प्रचलन शुरूआत से रहा है. जो अब वक़्त के साथ गुम सा होने लगा है। आदिवासी भगोरिया हाट का महत्व इसलिये भी बढ़ा है क्योंकि उस वक़्त आवागमन के साधन कम हुआ करते थे तो इस हाट में होली का न्योता रिश्तेदारों को दिया जाता था क्योंकि नजदीकी भगोरिया हाट में सारे आसपास के लोग एकत्रित होते थे। रिश्तेदारी भी तब नजदीक ही हुआ करती थीं जिसकी वजह आवागमन के साधन न होना ही मुख्य रही है।
इनकी पारंपरिक वेशभूषा, आभूषणों ने आज विश्व स्तर पर अलग पहचान पाई है. और तो और विश्व भर से कई पर्यटक इस हाट को देखने आते है।
सभी फोटो प्रमोद जैन