गेहूं की खरीदी के लिए इस बार बाजार से 50 हजार करोड़ कर्ज लेने की तैयारी है। यह पिछली बार से 14 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। सरकार की गारंटी के लिए इसका प्रस्ताव कैबिनेट में जाने वाला है। इतनी बड़ी राशि बाजार से उठाने के कारण किसानों ने बोनस की मांग उठा दी है। इसके पीछे बड़ी वजह भी है कि 15 जनवरी को पूरी हुई धान की खरीदी सरकार ने बिना बोनस के कर ली। कुल 46 लाख टन धान 2183 रु./क्विंटल के समर्थन मूल्य पर खरीदा गया। यानी किसानों को बोनस का 3,758 करोड़ रुपए का नुकसान हो गया। रबी में बोनस नहीं मिलता है तो फिर उन्हें 4250 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के संकल्प पत्र 2023-24 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बोनस जोड़कर गेहूं 2700 रुपए प्रति क्विंटल और धान 3100 रुपए प्रति क्विंटल खरीदने का वादा था। हाल ही में पूरी हुई धान की खरीदी 2183 रुपए प्रति क्विंटल पर की गई। यानी 817 रु./क्विंटल का किसानों को नुकसान हुआ है।
यही स्थिति अब रबी सीजन के गेहूं की खरीदी की होने वाली है। एमएसपी के बाद सरकार को 425 रुपए बोनस देना होगा। साफ है कि पार्टी के संकल्प पत्र में अनाज खरीदी से जुड़े बिंदु सवालों के घेरे में आ गए हैं। सरकार को यदि बोनस देना है तो इसकी घोषणा जल्द करनी होगी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग जाती है तो मुश्किलें बढ़ जाएंगी। देश में गेहूं की डिमांड है। इस बार राज्य सरकार ने सर्वाधिक 100 लाख टन (कोरोना के दो साल 2020-21 व 2021-22 को छोड़कर, इन दोनों वर्षों में क्रमश: 128 लाख और 129 लाख टन गेहूं खरीदा गया था।) गेहूं खरीदी का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए बाजार से अब तक की सबसे बड़ी रकम बतौर कर्ज लेना प्रस्तावित है।
एमएसपी से बाजार में रेट ज्यादा – गेहूं का समर्थन मूल्य वर्ष 2024-25 में 2275 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में गेहूं का रेट 2500 रुपए चल रहा है।