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भारतीय शास्त्रीय संगीत का किला ध्वस्त हो गया

उस्ताद राशिद खान के जाने से भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक किला ध्वस्त हो गया। बहुत कम उम्र में गायन सीखना प्रारंभ किया और ऐसा रियाज किया कि आवाज को जिधर भी ले जाना चाहते… वहीं रास्ता बन जाता। शास्त्रीय संगीत में महज राग का स्वरूप, बंदिश के बोल, ताल… बस इतना ही याद करता है कलाकार बाकी, सब कुछ मंच पर ही क्रिएट करता है। खान साहब जैसा कलाकार अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत ही कम उम्र में इतने रास्ते दिखा गए हैं कि हम सभी उनके कृतज्ञ हैं। आमतौर पर लोग उन्हें ‘आओगे जब तुम साजना’ उस गीत से पहचानते हैं। बात ठीक भी है कि इस गीत से उन्हें बहुत लोकप्रियता भी मिली और वे इसे पसंद भी करते थे, पर ये उनके विशाल गायन रूपी झरने की एक मात्र एक बूंद है ।
उनका गायन परिपूर्ण था
तान, अलाप, खटका, मुर्की, गमक आदि सब कुछ उनके गायन में देखने मिलता है। जिस अन्दाज से ठुमरी गाते… ऐसा लगता जिसको भी वो मनाने की बात कह रहे हैं, उसे उनकी बात मानना ही पड़ेगी। जब वे भजन गाते ‘आज राधा ब्रज को चली’ तो राधा का पूरा प्रवास आंखों के सामने आ जाता। उन्होंने फ्यूजन, ठुमरी, भजन, फिल्मी गीत, वाद्यों के साथ जुगलबंदी, गजल के साथ शास्त्रीय गायन आदि सब कुछ किया।
वे पूर्णतया संगीत में डूबे हुए व्यक्ति 28 जनवरी 2020 को इंदौर म्यूजिÞक फेस्टिवल (संगीत गुरुकुल हर वर्ष पंडित जसराजजी के सम्मान में उनके जन्मदिन) में आयोजित करता है) में उनका गायन था। उस दौरान मैंने देखा और समझा कि सिर्फ अपने गायन से ही नहीं, एक बड़ा कलाकार अपने साथी, सहयोगियों और छोटे कलाकारों को आदर सम्मान देने जैसी खासियत से भी आमजन की नजर में बड़ा या महान होता जाता है। मुझ सहित इस आयोजन की व्यवस्था में जुड़े हर व्यक्ति-गुरुकुल के छात्रों के प्रति उनकी सहजता-सरलता से हम अभिभूत थे कि इतना बड़ा कलाकार और ऐसी विनम्रता।
कार्यक्रम के बाद मुझसे कहते गौतम सब ठीक हो गया ना? मैंने कहा- उस्ताद में क्या कहूं बस आपने हमारा निमंत्रण स्वीकार लिया… यही बहुत है… तो वे बोले- देखो तुम अपने गुरुजी (पंडित जसराज) के लिए इतना बड़ा आयोजन करते हो, यह बहुत बड़ी बात है, क्योंकि उनके रहते ये कर रहे हो, जाने के बाद तो सभी करते हैं। फिर कहने लगे- हमारा गाना-बजाना तो कुछ भी नहीं है। हम जो सुनाते हैं, हमारे बुजुर्ग तो कलाकार तो बहुत पहले करके चले गए हैं, हम तो बस उनके बताये रास्ते पर चलने की कोशिश ही कर रहे हैं। हमारे गले से कभी कुछ अच्छा निकल जाता है तो गुरुओं को और भगवान को धन्यवाद देता हूं कि मुझसे सूई की नोक बराबर कुछ हो पाया।
कार्यक्रम के अगले दिन बसंत पंचमी थी। वे गुरुकुल आए, सरस्वती पूजन किया और विद्यार्थियों को राग वसंत सुनाया और बच्चों का गायन भी सुना और आशीर्वाद भी दिए और कहा- गौतम कितना अच्छा काम कर रहे हो, जब कभी मेरी जरूरत हो तो याद करना। राशिद खान साहब जीतने अच्छे कलाकार उतने ही उम्दा गुरु भी थे। उनके कई शिष्यों से मिला हूं, बातचीत भी होती रहती है। संगीत के साथ-साथ जो संस्कार हैं… अपने से बड़े और छोटों से प्यार-सम्मान करना है, उनके पुत्र और शिष्य दोनों में ही दिखाई देता है। सभी शिष्य अपने उस्ताद पर इतना प्यार रखते हैं और उस्ताद भी लगातार अपने शिष्यों को ज्ञान लुटाते रहते।
उस्ताद राशिद खान अवतार ही थे… जो काम भगवान ने उन्हें देकर भेजा, वो किया और चले गए। उनका जाना बहुत जल्दी हुआ। अभी एक-दो दशक और तबीयत से उनका गाना होता… पर प्रभु इच्छा।
उस्ताद राशिद खान से सीखने वाली बात ये है कि यदि आप अपनी जड़ों को (शास्त्रीय संगीत) मजबूत कर लें तो तो आप किसी भी प्रकार के संगीत को आसानी से गा सकते और सफल भी हो सकते हैं। संगीत में संकुचित मानसिकता से बाहर निकलकर ही असली संगीत से आपका परिचय हो सकता है ।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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