पतंग का नाम सुनते ही ना जाने कितनी खट्टी-मीठी यादें मन में दौड़ जाती हैं। 80 के दशक में अलग-अलग प्रकार की पतंगों से बाजार पटे रहते थे। सिरकटी, तिरंगी, चौकड़ी, परियल, डंडियल, कानभात, आंखभात, चांदभात, गिलासिया, चुग्गी, ढग्गा… और भी ना जाने कितने अनूठे प्रकार की पतंगे होती थीं।
पतंग बनाना और उनको उड़ाना एक विशिष्ट कला होती थी। किसी गली में डोर ‘सूती’ जा रही है। कोई फ्यूज बल्बों को फोड़कर कांच पीस रहा है। कोई ‘सरस’ या नीला थोथा रंग के साथ घोल रहा है। घोल तैयार होते ही किसी के हाथों में धागे की ‘रील’ होती है… और कोई उसे घोल में डुबोकर ‘चकरी’ में लपेट रहा है। इस चकरी को ‘हुचका’ या ‘उचका’ भी कहते हैं। बिजली के दो खंभों के बीच यह डोर सुखाई जाती है और फिर लपेट ली जाती है। यह संक्रांति की पूर्व संध्या की बात होती थी… खैर! अब तो डोर और पतंग बाजार से ले आते हैं।
उस्ताद लोग हम बच्चों को पतंग उड़ाने की कला स्टेप बॉय स्टेप सिखाते थे। सबसे पहले जोते बांधना सिखाया जाता था। यह एक युक्तिसंगत वैज्ञानिक प्रक्रिया है। सबसे पहले तो अपनी पतंग को मांझे से बांधें। इसके लिए मांझे का लगभग 1 मीटर लम्बाई का धागा तोड़ लें और उसे दोहरा कर लें। अब आप पतंग के बीच में धनुषाकार किमची और लम्बवत किमची के मिलने वाले जगह में एक छेद लेफ्ट साइड में ऊपर की तरफ करें और दूसरा चीड़ राइट साइड में नीचे की तरफ करें (ऊपर-नीचे तिरछे छेद) और मांझे के एक सिरे को बांधें… इसी तरह आप पतंग के नीचे वाले हिस्से में छेद करें और मांझे को बांधे। अब आप मांझे को बीच में से पकड़ें और उसे दोनों तरफ समान लम्बाई में नापें और मांझे के ठीक बीच में ऊपरी हिस्से में एक लगभग 1 इंच का लूप रखते हुए गांठ लगा दें। पतंग को लूप से पकड़कर जमीन से ऊपर उठाकर हवा में लहराकर उसका बैलेंस देख लें। यदि दोनों तरफ समान है… पतंग के जोते तैयार हैं।
यदि पतंग एक तरफ झुक रही है तो दूसरीं तरफ मोटे धागे या सुतली का टुकड़ा बांधकर उसको बैलेंस किया जाता था… इस कला को खिरनी बांधना कहते हैं।
अब उस लूप में मांझे को कसकर गठान लगाकर बांधें और अपने हाथ में मांझे को पकड़ें और अपने साथी को बोलें कि वो पतंग को आपसे दूर ले जाकर जाए और पतंग को दोनों कोनों से पकड़कर हवा की दिशा (हवा का प्रवाह आपके पीछे से आपकी साथी के चेहरे की तरफ हो) में खड़ा हो। धागे को तानें और साथी को पतंग को हवा में ऊपर धकेलने / उछालने के लिए बोलें, ताकि आपकी पतंग हवा में आ सके। इस बात को ध्यान में रखें कि पतंग को उड़ने के लिए पेड़ या अन्य कोई भी किसी भी तरह की रूकावट न हो, साथ ही आप हवा की दिशा में ही पतंग को उड़ाएं, ताकि आपकी पतंग को जरूरी हवा मिलती रहे। जैसे ही वो उड़नची दे… तुरन्त मांझे को दो चार हाथ खिंचें… पतंग उड़ने लगेगी।
पतंग को हवा में बनाए रखने के लिए अंगूठे और उंगली के मध्य पकड़े धागे को कोहनी के जोड़ के दम पर कलाई से धागे को जर्क दिया जाता है, जिससे पतंग ऊपर चढ़ती है और इधर-उधर भटकने से बचती है। ढील दें, ठुनकी दें और अपनी पतंग को ऊपर उठते हुए देखते हुए पतंग उड़ाने का आनंद लें।
पेंच दो तरह से लड़ाए जाते हैं… डोर खींचकर या ढील देकर। डोर खींचकर पेंच लड़ाना चाहते हैं तो आपकी पतंग विरोधी पतंग से नीचे होनी चाहिए। अगर ढील देकर पेंच लड़ाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि डोर को धीरे-धीरे छोड़ें। इस दौरान पतंग को गोल-गोल घुमाते रहेंगे तो जीतने की संभावना ज्यादा रहेगी। पेंच लड़ाते समय ठुनकी देते हुए मांझा टकराएं। जैसे ही आपको लगे कि आपकी ठुनकी से आपके पतंग ने जोर पकड़ा है… रप्प से ढील दें और विरोधी के मांझे पर रिग्गे पटककर काट दें और गर्व से चिल्लाएं का …. ट …..टा …..है…!