भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल में पॉप सिंगर उषा उत्थुप ने कहा, ह्यमैं 100% ओरिजनल सिंगर हूं। संगीत मेरे खून में है। मेरा मकसद सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाना है। मैंने संगीत नहीं सीखा, क्योंकि मुझे तो क्लास चौथी में संगीत क्लास से बाहर निकाल दिया गया था। इसकी वजह यह था कि मेरी आवाज भारी थी। सोसायटी फॉर कल्चर एंड एनवायरनमेंट के 6वें भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल (बीएलएफ) का आगाज शुक्रवार को भारत भवन में हुआ। फेस्टिवल के पहले दिन कई विद्वान शामिल हुए। इनमें पॉप सिंगर उषा उत्थुप का भी सेशन रहा। करीब 1 घंटे तक उन्होंने अपने बारे में एक-एक बात बताई। दर्शकों के सवालों के जवाब भी दिए। इस दौरान उन्होंने मीडिया से चर्चा भी की।
म्यूजिक में करियर बनाने का ख्याल कैसे आया – संगीत और मेरी आॅडियंस मेरे लिए सब कुछ है। एक कलाकार के लिए उसकी आॅडियंस के प्यार से बढ़कर और कुछ भी नहीं। लोग हमेशा सोचते हैं कि ये तो इंग्लिश गाती है, हमारे लिए क्या गाएगी। बाकी सिंगर्स की तरह मेरे पास 10 हजार, 20 हजार, 30 हजार आॅडियंस तो नहीं है, लेकिन मेरे पास आप लोग हैं, जो मेरे 54 साल के संगीत की कमाई हैं। बाय चांस मैं संगीत की दुनिया में आ गई। पहले से कोई प्लान नहीं था। मेरे पिता, दादा सब संगीत से ताल्लुक रखते हैं और मैं भी हिस्सा बन गई। तब सिर्फ रेडियो हुआ करता है। किसी को कॉपी नहीं कर सकते थे। मैं कह सकती हूं कि मैं 100 % ओरिजनल सिंगर हूं। संगीत मेरे खून में है।
ज्यादातर लोगों ने सोचा कि ये साउथ इंडियन लड़की कांजीवरम साड़ी में नाइट क्लब में क्या कर रही है। मैंने पहले दिन 3-4 गाने गाए। फिर मैंने लोगों को बताया कि मेरा नाम उषा उत्थुप है। मैं बॉम्बे से हूं। केरला में शादी हुई है और अब मैं कोलकाता में रह रही हूं।
कलकत्ता के नाइट क्लब में इंग्लिश सॉन्ग कैसे गाने लगीं?- 1969 में सिर्फ एंग्लो इंडियन ही नाइट क्लब में गाना गाया करते थे। पहले का माहौल बहुत अलग था। सिर्फ लड़के/आदमी ही नाइट क्लब जाते थे। फिर मैं कांजीवरम साड़ी में गाने लगी। मुझे औरतों का सपोर्ट बहुत ज्यादा मिला और वहीं से महिला शक्ति की शुरूआत हुई। मेरी आॅडियंस में शानदार महिलाएं थीं, जिन्होंने ये नहीं सोचा कि सिर्फ मर्द ही नाइट क्लब में गा सकते हैं। धीरे-धीरे मैं नाइट क्लब परिवार का हिस्सा बन गई। लोग नाइट क्लब में अपनी बेटियों – बहनों के साथ मेरा गाना सुनने आने लगे।