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पड़ताल: मप्र में 20 साल में आई 75% कमी; 2018 से 23 में हुई सिर्फ 92 बैठक

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने राज्यों की विधानसभा में बैठकों की घटती संख्या पर चिंता जताई है। भोपाल में विधायकों के प्रबोधन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि बैठकों की कम संख्या लोकतंत्र के लिए अच्छी परंपरा नहीं है।
लोकसभा अध्यक्ष की इस चिंता पर ने मध्यप्रदेश विधानसभा का रिकॉर्ड खंगाला तो पता चला कि 20 साल में बैठकों की संख्या 75% घट गई है। 11वीं विधानसभा में दिग्विजय शासनकाल (1998-2003) में पांच साल के दौरान 278 बैठकें हुई थीं। यह संख्या 15वीं विधानसभा (2018-2023) तक आते-आते घटकर 92 रह गई। इसमें कुछ सत्रों को छोड़ दें तो अधिकतर सत्र तय की गई अवधि से पहले ही खत्म हो गए।
ज्यादा दिन तक सत्र
चलाने में रुचि नहीं
जानकार कहते हैं कि सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, किसी की भी रुचि अब ज्यादा दिन तक सत्र चलाने में नहीं रह गई है। सरकार का जोर इस बात पर रहता है कि विधायी कार्य पूरे हो जाएं। वहीं, विपक्ष शुरूआत से ही हंगामा करना शुरू कर देता है। अब हालत यह बनने लगी है कि प्रश्नकाल तक पूरा नहीं हो पाता और अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही बार-बार स्थगित करनी पड़ती है। सदन के सुचारू संचालन में पक्ष और विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जाहिर है कि दोनों पक्ष इसके लिए एक-दूसरे को ही जिम्मेदार बताते हैं।
अब जानिए, सत्र को लेकर कितनी गंभीरता
मध्यप्रदेश का बजट सत्र 7 से 19 फरवरी तक प्रस्तावित है। इस दौरान सिर्फ 8 बैठकें होंगी। सरकार सत्र में लेखानुदान पेश करेगी, जो करीब एक लाख करोड़ रुपए का होना संभावित है। जिस बजट के लिए प्रदेश में कभी 31 बैठकें होती थीं, वह अब सिमटते-सिमटते हफ्ते-दस दिन की बैठकों तक सीमित रह गया है। 11वीं विधानसभा में 25 से लेकर 31 बैठकों में बजट पारित हुआ, लेकिन 15वीं विधानसभा आते-आते 22 साल में बजट जैसे गंभीर मामले में बैठकों की संख्या 8 से 13 के बीच रह गई।
1999 में बजट सत्र
52 दिन का रहा
मध्यप्रदेश की 11वीं विधानसभा में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने फरवरी-मार्च 1999 में बजट पेश किया था। यह सत्र 52 दिन का था। यह अब तक की पांच विधानसभाओं का सबसे ज्यादा बैठकों का बजट सत्र रहा है। 31 बैठकों में बजट पर विधायकों ने चर्चा की, तब मध्यप्रदेश का बजट पारित हुआ

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