वर्तमान दौर में मीडिया खबरें देने और सत्ता से सवाल पूछने के अपने मूल काम से हटकर सिर्फ अवधारणा बनाने का शक्तिशाली टूल बन गया है। वह सत्ता से असहमति के स्वरों की अपराधी जैसी छवि बनाने के जुटा है। आज संसद विपक्षविहीन, मीडिया खबरविहीन और लोकतंत्र का लोक अर्थात् जनता अधिकारविहीन है। ये बातें वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका भाषा सिंह, नई दिल्ली ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश द्वारा ‘चुनाव, जंग और मीडिया’ विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में मुख्य वक्ता बतौर कहीं। उन्होंने कहा कि आज का कॉर्पोरेट मीडिया खबरविहीन है, लेकिन चलता चौबीसों घंटे है।
उन्होंने कहा- आज का मीडिया सिर्फ सत्ता, पार्टी, विचारधारा और उनके कारोबारी सहयोगियों के हित में परसेप्शन गढ़ने का काम करता है, इसीलिए देश का ही हिस्सा होने के बाद भी तीन जून से सुलग रहे मणिपुर एक भी मीडिया हॉउस अपना संवाददाता नहीं भेजता, लेकिन इजराइल के युद्ध के कवरेज के लिए अपने पत्रकार भेजे जाते हैं। इस युद्ध में इजराइल के पक्ष में एकतरफा कवरेज कर मीडिया ने वॉर क्राइम किया है। यदि अल-जजीरा के या कुछ अन्य अपनी जान पर खेलकर नहीं, बल्कि जान गंवाकर सच्ची रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार नहीं होते तो दुनिया नहीं जान पाती कि फिलिस्तीन के हजारों बच्चे इस युद्ध में किस दर्दनाक तरीके से मरे गए हैं। इसी तरह मीडिया ने यह झूठा परसेप्शन बनाया था कि आतंकवादी कसाब को जेल में बिरयानी खिलाई जा रही है, जबकि बाद में उसके वकील ने यह बात स्वयं कही कि उसने यह बात मजाक में कह दी थी। कोरोना के समय मीडिया द्वारा यह झूठी अवधारणा बनाई गई थी कि तबलीगी जमात के थूकने से कोरोना फैला। यह बात भी बाद में गलत साबित हुई, तब तक कॉर्पोरेट मीडिया नफरत के सॉफ्टवेयर का अपना काम कर चुका था।
फिर भी सत्ता से सवाल नहीं किए जाते – सिंह ने कहा कि नफरत फैलाकर ध्रुवीकरण करने का राजनीतिक असर भी दिखता है। यह देश में पहली बार हो रहा है कि देश का मीडिया जिम्मेदार लोगों और सत्ता से सवाल पूछने की बजाय विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने और उसे कमजोर करने में जुटा है। स्वतंत्रता के बाद कभी भी संसद को विपक्षविहीन नहीं किया गया, लेकिन मीडिया का पूरा विमर्श मिमिक्री पर केंद्रित है और मिमिक्री को अपराध घोषित किया जा रहा है। देश का मान बढ़ाने वाली महिला पहलवान अपने जूते टांग देती हैं, लेकिन कोई मीडिया हॉउस सत्ता से सवाल नहीं करता कि यौन शोषण करने वाले सांसद को क्यों बचाया जा रहा है? सजायाफ्ता बलात्कारी गुरुमत राम रहीम बाहर न सिर्फ खुला घूम रहा है, बल्कि चुनावी सभाएं भी कर रहा है, लेकिन निर्भया के समय ऐतिहासिक काम करने वाला मीडिया इन हिन्दू बेटियों के मामले में चुप है। जन, जंगल, जमीन से, जनता के हितों के मुद्दे मीडिया से गायब हैं। हाल के विधानसभा चुनावों के समय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचारी साबित करने में तो मीडिया जुटा रहा, लेकिन उसी समय नरेंद्रसिंह तोमर के बेटे के दसियों हजार करोड़ रुपए की बात करने, नशे की खेती और गैरकानूनी मनी ट्रांसफर इत्यादि से जुड़ी वीडियो रिकॉर्डिंग पर मीडिया में सन्नाटा रहा। उन्होंने कहा कि आज देश को असली पत्रकारिता करने वालों की और असली पत्रकारों को देश के साथ की जरूरत है।