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मालवा-निमाड़ पर कांग्रेस, महाकौशल पर भाजपा का ‘फोकस’

जबलपुर से शुरुआत, फिर ग्वालियर और तीसरा दौरा मोहनखेड़ा का। प्रियंका गांधी ने पहली यात्रा में पांच गारंटी की बात कही थी, तो तीसरे दौरे में मप्र सरकार की लाड़ली बहना सहित रसोई गैस टंकी के बढ़ते दाम को निशाने पर लिया कि अब जब चुनाव सिर पर हैं, तब घोषणाओं पर घोषणा कर के शिवराज प्रदेश की जनता को भरमा रहे हैं। उनका यह कहना भी खास था कि कांग्रेस राज में गैस टंकी और पांच किलो अनाज 485 रुपए में मिल रहा था, अब से दोनों जरूरी चीजें 1100 से अधिक दाम पर पहुंच गई हैं। बीते चुनाव में कांग्रेस का सिर मालवा-निमाड़ की सीटों ने ऊंचा किया था। भाजपा ने भी इस क्षेत्र के साथ महाकौशल क्षेत्र की सीटों पर फोकस कर रखा है।
कांग्रेस में राहुल हों, या प्रियंका – इन्हें लोग देखने के लिए तो उमड़ते हैं, लेकिन भाषण के मामले में मोशा जी तो ठीक शिवराज तक के आगे ये दोनों फीके साबित रहते हैं। ठीक है कि ये दोनों दिल से बात करते हैं, लेकिन भाजपा नेताओं की तरह इनके भाषण चमत्कृत और प्रभावित करने वाले नहीं होते। वजह शायद यह भी कि 65 साल से अधिक समय तक सत्ता में रही कांग्रेस को तब किसी दल ने आज जैसी चुनौती दी नहीं, इसलिए मनमोहन सिंह या उनके पहले नरसिंह राव, राजीव गांधी रहे, उनके प्रति आम मतदाता का रवैया भेड़-चाल जैसा ही रहा।
हाल के तीन दशकों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित अन्य सोशल मीडिया का जितने आक्रामक तरीके भाजपा उपयोग कर रही है, उतना कांग्रेस नहीं। कटु सत्य यह भी है कि जो सोशल मीडिया सत्ता शीर्ष पर पहुंचाने के लिए भाजपा का सहारा बना था, वही अब इन नेताओं, दल की पोल खोल अभियान में भी अग्रणी होकर भाजपा के लिए भस्मासुर की भूमिका निभा रहा है।
प्रियंका गांधी का मोहनखेड़ा आना कांग्रेस अपने लिए शुभ मानती रही है। दिग्विजय सिंह की ब्रह्मलीन ऋषभ विजय जी महाराज से नजदीकी का ही असर रहा कि इंदिरा जी से लेकर सोनिया गांधी, राहुल तक मोहनखेड़ा का मोह नहीं छोड़ पाए। गांधी खानदान की चौथी सदस्य के रूप में प्रियंका यहां आई थीं। शिवराज सरकार ने पातालपानी के समीप टंट्या मामा का स्मारक बनाया, तो आदिवासी समाज को अपने से जोड़ने के लिए प्रियंका ने भी राजगढ़ के आदिवासी अंचल में जनसभा को संबोधित करने के साथ आदिवासी जननायक टंट्या मामा की प्रतिमा का अनावरण भी कर दिया।
राहुल और प्रियंका को देखने का ही आकर्षण है कि जबलपुर, ग्वालियर, पोलायकलां, मोहनखेड़ा तक उमड़ने वाली भीड़ ने सरकार को भी चौंकाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरंतर मप्र आ रहे हैं। भाषण में वह गांधी परिवार को ‘एक कार और तीन बेकार’ कह कर खिल्ली भी उड़ाते रहे हैं, लेकिन इस दल के रणनीतिकार भी जानते हैं कि गांधी परिवार का आकर्षण भारी पड़ रहा है।
मध्यप्रदेश के आमजन से सीधे संवाद करने और उन्हें प्रभावित करने की जो ताकत शिवराज सिंह में है वह तोमर, सिंधिया, विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल में भी नहीं है, किंतु चौहान को जिस तरह भाजपा नेतृत्व ने साइड लाइन कर रखा है, उसका नकारात्मक प्रभाव भी भाजपा पर पड़ रहा है। आदिवासी बहुल सीटों की बात करें तो 2018 में इन 47 सीटों में से 29 सीटें कांग्रेस के पास थीं और भाजपा को 17 सीटें मिली थीं। जिस मोहनखेड़ा में प्रियंका की सभा हुई है, 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में भी धार ने मुख्य भूमिका निभाई थी। जिले की 7 में से 6 सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी जीते थे। उस समय जिले में कांग्रेस का एक-तरफा माहौल भी था। कांग्रेस के विधायक 30 हजार से लेकर 60 हजार वोटों तक से भी जीते थे, लेकिन 2020 के उपचुनाव के बाद जिले में कांग्रेस के पांच ही विधायक जीते हैं। कांग्रेस पार्टी का, प्रियंका गांधी का ध्यान मालवा निमाड़ पर है, यहां कुल 66 सीटें हैं और 2018 में कांग्रेस को मालवा निमाड़ का साथ मिला था, उसे 37 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 29 सीटें ही मिली थीं। मोदी से लेकर शाह तक का फोकस महाकौशल क्षेत्र पर है। महाकौशल में कुल 38 विधानसभा सीटें हैं, और 2018 में कांग्रेस को 24 सीटें और बीजेपी को 13 सीटें मिली थीं।

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