ईमानदारी और पूर्ण निष्ठा के साथ लंबे समय से बंठाढार-बंठाढार का जाप करने वाले भाजपा नेताओं ने सपने में नहीं सोचा होगा कि ऐन चुनाव से पहले वैसे ही हालात से खुद उनकी सरकार को गांव-गांव जूझना पड़ेगा। मध्यप्रदेश में गहराते बिजली संकट और खेतों में खड़ी लगभग 60 फीसदी फसल तबाह होने से किसानों की परेशानी हताशा में बदलती जा रही है। इसके साथ ही गांव से लेकर शहरों तक गहराते बिजली संकट ने भी सरकार की उजली योजनाओं को अंधेरे में धकेल दिया है। ऐसा नहीं कि मुख्यमंत्री चौहान चुनावी महीनों में बिजली-बारिश-फसल संकट से बिगड़ते हालात को लेकर चिंतित नहीं हैं। सरकार के हाथ में कुछ नहीं है, लेकिन शिवराज भी आम किसान की तरह महाकाल से बारिश की प्रार्थना के बाद ऐसा ही अनुरोध रामराजा सरकार से भी कर चुके हैं।
प्रदेश में मानूसन रूठा है, नतीजतन बांध खाली हैं, फसलें सूख रही हैं। सरकार की चिंता यह भी है कि पूरे प्रदेश में निकाली जा रही जनआशीर्वाद यात्रा को वो करोड़ों परिवार कैसे आशीर्वाद देंगे जो प्रकृतिजन्य सूखे के हालात और बिजली संकट से परेशान हैं। हर वर्ग की परेशानी से विचलित हो जाने वाले मुख्यमंत्री के पास आसान हल रहता है कि ऐसे तमाम धधकते मामलों पर तुरंत घोषणा के मलमली कालीन बिछा देते हैं। प्रकृति की नाराजी के सम्मुख अभी तो खुद मुख्यमंत्री भी असहाय नजर आ रहे हैं। सूखे और बिजली से उपजे संकट से राहत का हल सरकार के पास भी नहीं है। खुद मुख्यमंत्री स्वीकार चुके हैं कि पचास साल में सूखे का ऐसा संकट पहली बार निर्मित हुआ है।
प्रदेश में पुन: भाजपा की सरकार बनाने के लिए गांव-गांव रथ दौड़ा रहे अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी जैसे नेताओं के भी बस में नहीं है कि सरकार की तरफ से बिजली-पानी की भरपूर व्यवस्था का वादा कर सकें। सरकार के हाथ में ही होता तो नित नई घोषणा करने वाले मुख्यमंत्री हर खेत में पानी के टैंकर भिजवाने का प्लान घोषित कर के मंत्रियों को जिलेवार निगरानी का जिम्मा भी सौंप देते। जले पड़े ट्रांसफार्मर बदलने के लिए अफसरों को भी खेत-खेत दौड़ा देते। हर दो-चार दिन में कौतुक करने वाले- सिंधिया समर्थक ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर भी गहराते बिजली संकट वाले इन दिनों में जाने कहां कंबल ओढ़ कर खर्राटे भर रहे हैं।
चुनावी साल में अल्पवर्षा ने शिवराज सरकार के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। बारिश नहीं होने के चलते जहां एक ओर खेतों में खड़ी किसानों की फसल सूख रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में बिजली संकट के चलते सिंचाई के लिए पानी भी नहीं मिल पा रहा है।
मालवा-निमाड़ अंचल के किसान बड़े पैमाने पर सोयाबीन की खेती करते हैं, इन पर भी सबसे अधिक मौसम की मार पड़ी है। फसल बुरी तरह बर्बाद हो गई है। खेत पूरी तरह सूख गए हैं और जमीन फटने लगी है, इससे खेतों में खड़ी फसल का तगड़ा नुकसान हुआ है। प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के कई जिलों में हुई बेमौसम बारिश ने किसानों के बीच रबी फसलों, विशेषकर गेहूं, चना और सरसों की क्षति को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है।
हर दम बिजली का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ने वाली सरकार इस संकट के दौरान निरुत्तर है। गांवों में कितने घंटे बिजली मिलेगी, शहरों में कब बिजली चली जाएगी इसका जवाब नाराज, महाराज और शिवराज-इन गुटों में बंटी भाजपा के किसी भी दबंग नेता के पास नहीं है। सरकार के पास फिलहाल तो एकमात्र हल यही नजर आता है कि जनआशीर्वाद यात्रा वाली सभाओं में यह घोषणा करती चले कि सूखे या अतिवृष्टि के कारण तबाह हुई फसलों का सर्वे कराएंगे और मुआवजा देंगे-जाहिर है बाकी घोषणाओं को पूरा करने की तरह मुआवजा वितरण के लिए भी सरकार को फिर भारी भरकम ऋण लेना होगा।