चुनाव को अब करीब चार महीने ही बचे हैं। ऐसे में भाजपा नेताओं की पेशानी पर बल है। नाराज नेताओं को लेकर भाजपा का पिछला अनुभव बेहद ही खराब रहा है। नाराजगी के चलते 2020 के विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को कई सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा। यही कारण है कि अब हर नाराज नेता को मानने की भरसक तैयारी चल रही है।
नाराज नेताओं की पड़ताल की तो पता चला कि सबसे ज्यादा नाराज नेता ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के हैं। इस नाराजगी का कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक हैं। पुराने और नाराज भाजपा नेताओं का कहना है कि ये लोग बाहर से आए हैं और हम भाजपा में ही हैं। इसके बावजूद पार्टी सिंधिया समर्थकों को ज्यादा ही तवज्जो दे रही है… वो भी तब, जब ये लोग उपचुनाव हार चुके हैं। इसी अंचल के एक नेता से बात की तो उनका दर्द छलक उठा। उन्होंने कहा कि हमें सिंधिया और उनके समर्थकों के बीजेपी में आने से कोई परेशानी नहीं है, लेकिन पार्टी स्तर पर उन्हें ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। इससे मूल विचारधारा वाले असली भाजपा नेता उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। सिंधिया समर्थक विधायक उपचुनाव हार गए, इसके बावजूद उन्हें निगम मंडल की कमान सौंपी गई, लेकिन 2018 में चुनाव हारने वालों को कोई पद नहीं दिया गया।
वे अगले चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी तो कर रहे हैं, लेकिन सिंधिया समर्थकों को प्राथमिकता मिलने की संभावना के चलते कई नेता विकल्प पर विचार भी कर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को बीजेपी में शामिल हुए करीब तीन साल हो गए हैं, वापस चुनाव आ गए हैं। ग्वालियर-चंबल में भाजपा के पुराने नेता सिंधिया समर्थकों को अपना नहीं पाए हैं। चुनावी साल में भाजपा ने अपने पुराने नेताओं को अवॉइड कर सिंधिया समर्थकों को न केवल अहम् जिम्मेदारी दी है, बल्कि उन्हें कई समितियों और मंडल में जगह भी दी है।