उत्तरप्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष अजय रॉय के बयान से हड़कंप मच गया है। उन्होंने राहुल गांधी के अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि प्रियंका गांधी चाहें तो वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं। एक-एक कार्यकर्ता उनके लिए जान लगा देगा। लोकसभा चुनाव के लिए यूपी बेहद अहम् है। यहीं से केंद्र की सत्ता का रास्ता खुलता है। यूपी फतह करने का मतलब आधी जंग जीत लेना होता है।
पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने लगातार यूपी में अपनी जमीन गंवाई है। यहां तक वह लोकसभा चुनाव में अपने पारंपरिक गढ़ अमेठी जैसे क्षेत्रों को भी बचाने में नाकाम साबित हुई है। अमेठी इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि गांधी परिवार और अमेठी एक-दूसरे का पर्याय रहे हैं। इस संसदीय सीट से 1980 में पहली बार संजय गांधी ने जीत हासिल की। संजय गांधी के बाद राजीव गांधी, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन 2019 के चुनाव में राहुल को पटखनी देकर केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने पूरा खेल पलट दिया है। जो अमेठी कभी कांग्रेसियों का गढ़ हुआ करती थी, उसे स्मृति ने अपना किला बना लिया है। सही मायने में स्मृति की राजनीतिक पहचान ही अमेठी से बनी है। शुक्रवार को अजय रॉय ने जैसे ही राहुल गांधी के अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कही, सियासत उबाल मारने लगी। अमेठी संसदीय क्षेत्र गांधी परिवार का गढ़ रहा है। हालांकि, अब स्मृति इरानी इसमें सेंध लगा चुकी हैं। उन्होंने गांधी परिवार से अमेठी के लोगों का मोह भंग कराने के लिए जमीनी स्तर पर मेहनत की है। राहुल गांधी से पहले संजय, राजीव और सोनिया इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे।
राहुल के लिए स्मृति इरानी से अब यहां पार पाना आसान नहीं होगा। इसे पिछले लोकसभा चुनावों के गणित से समझने की कोशिश करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति इरानी राहुल से हार गई थीं, लेकिन कांग्रेस नेता की जीत का अंतर घट गया था। स्मृति इरानी ने पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 55 हजार वोटों से पटखनी दी।