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मरण इतना आसान नहीं है कि एक झटके में हो जाए : विहर्ष सागरजी

साधु अपने यौवन को छोड़कर, सारी सुख-सुविधाओं को त्याग उत्तम समाधि मरण के लिए साधुता ग्रहण करते हैं। जन्म का अनुभव तो सभी को है, पर मरण का किसी को नहीं। मुनि समाधि के लिए महाराज बनते हैं। अनुकूलता-प्रतिकूलता में खुश रहना पड़ता है, अपने परिणामों को संभालना होता है। उक्त उद्गार रहे आचार्य विहर्ष सागरजी के। अवसर था मोदीजी की नसिया में प्रवचन का। उन्होंने कहा कि वृद्ध जिसके हाथ-पाव नहीं चलते वह भी यही कोशिश करता है कि वह और जिए, जबकि मुनि का प्रयास होता है मेरा मरण अच्छा हो, मृत्यु बड़े समतामई परिणाम के साथ हो। मुनि समाधि के लिए महाराज बनते हैं, मरण इतना आसान नहीं है कि एक झटके में हो जाए। गौतम गणधर स्वामी ने कहा था कि निर्मल मन सबसे बड़ा तीर्थ है। मन की विशुद्धि, आत्मा की विशुद्धि ने मुझे मुनि बना दिया। समाधि के समय में मैं, मेरी आत्मा और मेरे परिणाम पर ध्यान देना होता है। समाधि आप को भगवान बना देगी। वैसे भी साधु प्रतिदिन समाधि की तैयारी करता है। समाज के राजकुमार पाटोदी एवं वरिष्ठ सतीश जैन ने बताया कि धर्मसभा के प्रारंभ में मंगलाचरण बाल ब्रह्मचारी सुनील भैया ने किया।

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