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चुनावी युद्ध का श्रीगणेश……….

बीजेपी ने गुरुवार को मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए 60 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर सबको चौंका दिया। 2024 के आम चुनाव से पहले इस साल विधानसभा चुनाव तो पांच राज्यों (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम) में होने हैं, लेकिन शुरुआती तीन राज्यों की विशेष अहमियत इस लिहाज से है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है। हिमाचल प्रदेश और खासकर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों हार झेलने के बाद बीजेपी इन तीनों राज्यों में किसी तरह का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती।

लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सभी पार्टियों ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है। बीजेपी ने तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए 60 प्रत्याशियों की पहली सूची भी जारी कर दी है। इन विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
बीजेपी ने गुरुवार को मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए 60 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर सबको चौंका दिया। 2024 के आम चुनाव से पहले इस साल विधानसभा चुनाव तो पांच राज्यों (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम) में होने हैं, लेकिन शुरुआती तीन राज्यों की विशेष अहमियत इस लिहाज से है कि यहां बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर है। हिमाचल प्रदेश और खासकर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों हार झेलने के बाद बीजेपी इन तीनों राज्यों में किसी तरह का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। संभवत: इसीलिए चुनाव आयोग की ओर से चुनाव की तारीखों का ऐलान होने से भी पहले उसने इन दो राज्यों में प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह चुनाव तैयारियों के मामले में अपने प्रतिद्वंद्वी दलों से काफी आगे है। जहां तक राजस्थान का सवाल है तो प्रत्याशियों की सूची भले न जारी की गई हो, लेकिन दो अहम् समितियां (चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प-पत्र समिति) जरूर गठित कर दी गईं। पहली नजर में ये कदम बताते हैं कि चुनाव की तैयारियों को लेकर बीजेपी नेतृत्व अन्य दलों के मुकाबले कहीं ज्यादा गंभीर है, लेकिन थोड़ा ठहरकर देखें तो इन कदमों के साथ भी कई किंतु-परंतु जुड़े नजर आते हैं।
बेशक! चुनावों से काफी पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित करने के कई फायदे हैं। एक तो इन प्रत्याशियों को अपने क्षेत्र में काम करने का वक्त मिल जाता है, दूसरे पार्टी नेतृत्व के पास भी इस बात का मौका होता है कि अगर अधिकारिक प्रत्याशी के खिलाफ असंतोष या बगावत जैसी स्थिति बने तो उससे समय रहते निबट सके या संभावित नुकसान को कम कर सके, मगर इसी का दूसरा पहलू यह है कि फैसले से असंतुष्ट तत्व भी जवाबी कदम तय करने का वक्त पा जाते हैं। विरोधी दलों के सामने भी यह मौका होता है कि वे प्रतिद्वंद्वी पार्टी के प्रत्याशी को देखकर और उससे क्षेत्र विशेष में बने जातीय और अन्य समीकरणों का ध्यान रखते हुए अपने प्रत्याशी तय करें। संभवत: इन्हीं कारणों से बीजेपी ने पहली सूची में उन्हीं सीटों को रखा, जहां उसकी स्थिति कमजोर मानी जा रही है।
ये सभी सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी को हार मिली थी। जहां तक राजस्थान की बात है तो दोनों अहम् समितियों का गठन होते ही इस बात पर चर्चा शुरू हो गई कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को इनमें जगह नहीं दी गई। चर्चा की वजह यह है कि पार्टी नेतृत्व के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं माने जा रहे। बहरहाल, चुनावों में अभी वक्त है और ऐसी चर्चा और जवाबी चर्चा अभी हर दल में उठती और मंद पड़ती रहेगी। इतना जरूर है कि चुनाव आयोग की घोषणा से पहले ही विधानसभा चुनावों के समर का शंखनाद हो चुका है और अब दोनों पक्षों से ऐसे नए-नए दांव देखने को मिलते रहेंगे।

बातचीत से
हल निकले
आज चीन के साथ 19वें दौर की कोर कमांडर स्तर की बातचीत होनी है। ये बातचीत काफी अहम् है और माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच किसी सहमति पर बात बन सकती है। अगले सप्ताह पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने वाले हैं। पूर्वी लद्दाख में छअउ के पास बने गतिरोध को दूर करने के लिए भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर की एक और बातचीत सोमवार को होने जा रही है। वैसे तो यह बातचीत का 19वां दौर है, लेकिन इसे खास महत्व दिया जा रहा है तो उसकी कई वजहें हैं। यह बातचीत ऐसे समय हो रही है, जब अगले सप्ताह ही साउथ अफ्रीका में ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की आमने-सामने मुलाकात होने वाली है। यही नहीं, अगले महीने यानि सितंबर में भारत में हो रहे ॠ-20 देशों के शिखर सम्मेलन में भी राष्ट्रपति शी शामिल होने वाले हैं। ऐसे में दोनों तरफ जल्द से जल्द सहमति की गुंजाइश तलाशने को लेकर एक पॉजिटिव दबाव बनने की उम्मीद स्वाभाविक हो जाती है। याद किया जा सकता है कि 2017 में डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच ढाई महीने से चला आ रहा गतिरोध पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी की तय मुलाकात से कुछ ही दिन पहले दूर हुआ था। तब ब्रिक्स देशों की ही चीन में होने वाली शिखर बैठक में दोनों नेता मिलने वाले थे, लेकिन यह बात भी सही है कि 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्तों में असामान्य गिरावट आई। हालांकि लगातार बातचीत से छअउ के कुछ विवादास्पद स्थानों पर सेना को पीछे ले जाने पर सहमति हासिल की जा चुकी है, लेकिन आज भी कुछ जगहों को लेकर विवाद बना हुआ है, साथ ही सीमा पर दोनों तरफ 50 हजार से ज्यादा सैनिक भी तैनात हैं। ऐसे में देशों के रिश्तों में विश्वास का संकट बना हुआ है। चीन का जोर इस बात पर है कि छअउ के विवाद को दरकिनार करते हुए दोनों देश रिश्तों को सामान्य बनाने की कोशिश करें, लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि जब तक छअउ पर 2020 से पहले की यथास्थिति नहीं कायम की जाती तब तक रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते। अभी तो सबसे बड़ा सवाल है कि रिश्तों में आ चुके विश्वास के संकट को कैसे हल किया जाए?

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