उज्जैन और देवास के सीवरेज नालों से शिप्रा नदी प्रदूषित हो रही है। शिप्रा नदी के प्रदूषण पर लगी याचिका पर सुनवाई और रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई है, वहीं नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 4 जिलों के कलेक्टर और नोडल एजेंसी की रिपोर्ट पर अलग से एडवोकेट्स की नियुक्ति की है।
शिप्रा प्रदूषण को लेकर विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद् सदस्य एवं शिप्रा अध्ययन यात्रा के संयोजक व पर्यावरणविद् सचिन दवे की ओर से एनजीटी में याचिका लगाई गई है। एनजीटी ने मामले में उज्जैन, इंदौर, देवास और रतलाम के कलेक्टर और गठित नोडल एजेंसी एडिशनल चीफ सेक्रेटरी जल संसाधन मंत्रालय एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) चेयरमैन को शिप्रा प्रदूषण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। याचिकाकर्ता दवे ने बताया- याचिका में गुरुवार को सुनवाई हुई। इसमें एनजीटी के निर्देश पर उज्जैन, देवास, इंदौर और रतलाम कलेक्टर ने रिपोर्ट सौंपी। नोडल एजेंसी ने अपनी अलग से रिपोर्ट प्रस्तुत की। दवे के अनुसार बहस के दौरान कई बिंदुओं पर चर्चा हुई। इसमें यह जानकारी सामने आई कि उज्जैन-देवास के सीवरेज नालों से शिप्रा नदी प्रदूषित हो रही है। एनजीटी ने कहा कि नोडल एजेंसी और कलेक्टर्स ने मिलकर जो रिपोर्ट बनाई है, उस रिपोर्ट में कई जगह स्पष्ट नहीं है। उद्योगों के ट्रीटमेंट प्लांट को भी पीसीबी ने क्रॉस चेक नहीं किया।