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फिर नोटबंदी!…..

फिर नोटबंदी! फिर अफरातफरी! नहीं…। इस बार कोई अफरातफरी नहीं मचने वाली है, क्योंकि अफरातफरी मचाने वालों, लाइन में लगने वालों के पास अब दो हजार के नोट हैं ही नहीं। रिजर्व बैंक ने चार साल पहले ही इन नोटों की छपाई बंद कर दी थी। आम आदमी जिन एटीएम से जरूरत के लिए पैसे निकालता है, उन एटीएम ने लगभग साल भर पहले से दो हजार के नोट उगलने बंद कर दिए थे। दो हजार के नोट अब उन्हीं अफसरों के पास हैं जो रिश्वत के भूखे रहते हैं। उन्हीं कारोबारियों के पास हैं जो टैक्स चुकाए बिना करोड़ों कमाने का लालच पाले रहते हैं या उन राजनीतिक पार्टियों के पास हैं, जो उद्योगपतियों या कारोबारियों से बेहिसाब चंदा बटोरती हैं। यह तो चंदा भी नहीं होता, एक तरह की रिश्वत ही होती है! सामान्य आदमी को तो अब इस गुलाबी नोट के दर्शन भी मुमकिन नहीं है।
अब आते हैं दो हजार के नोट को चलन से बाहर करने के फैसले पर। यह फैसला सही है या गलत? उचित है या अनुचित? तुलनात्मक रूप से सही माना जाए तो इसलिए कि आम आदमी पर इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
गलत इस रूप में कहा जा सकता है कि जब काला धन खत्म ही करना था तो 2016 में पांच सौ और हजार का नोट बंद करके दो हजार का नोट क्यों चलाया? क्योंकि नोट जितने छोटे यानी कम रकम के होंगे, काले धन पर उतना ही अंकुश लग पाएगा। ऐसे में जब दो हजार का नोट जारी करना ही गलत फैसला था तो उसे चलन से बाहर करने को सही कैसे ठहराया जा सकता है? ये तो एक तरह की भूल सुधार हुई!
अब इस भूल सुधार पर भी सरकार इसलिए आई है, क्योंकि आगे लोकसभा चुनाव हैं। चार बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। सही मायने में तो लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह फैसला लिया गया है। और कुछ भी नहीं। दरअसल, दो हजार के नोट इस वक्त केवल करोड़पतियों, अरबपतियों के पास ही हैं। ङ्घऔर हम हिंदुस्तानियों की आदत है, पैसे वाले परेशान हों तो हमें आत्मिक खुशी मिलती है। जब आम आदमी को आत्मिक खुशी मिलती है तो इस खुशी से वोट निकलकर आते हैं। सरकार यही चाहती है।

2000 के नोट छापना क्यों नोटबंदी के असल मकसद से उलट था..

इसे समझने के लिए सबसे पहले कालेधन को जानना जरूरी है। पहली बात तो यह कि कालाधन हमेशा नोटों के रूप में नहीं होता। यह सोना-चांदी, जमीन-जायदाद या किसी बेशकीमती वस्तु के रूप में भी होता है। मोटे तौर पर कालाधन ऐसी कमाई होती है, जिस पर टैक्स नहीं चुकाया जाता।
ल्ल हम एक रिश्वतखोर अफसर या बेईमान कारोबारी का उदाहरण ले सकते हैं। कल्पना करते हैं कि अगर किसी रिश्वतखोर अफसर ने किसी शख्स से रिश्वत ली। आमतौर पर वह यह रिश्वत करेंसी नोटों के रूप में लेगा, लेकिन हो सकता है कि वह सोने के रूप में रिश्वत ले।
ल्ल इसी तरह अगर किसी बेईमान कारोबारी की बात करें तो वह अगर सही कमाई पर टैक्स देने के बजाय फर्जी बिलों के जरिए ज्यादा खर्च दिखाकर कागजों में अपना मुनाफा कम दिखाए तो भी उसके पास हिसाब-किताब से ज्यादा पैसे होंगे।
ल्ल ऐसे हालात में दोनों यानी रिश्वतखोर अफसर और बेईमान कारोबारी इस रकम को नकद नोटों के रूप में रखना पसंद करेंगे। हालांकि ऐसा भी हो सकता है कि बिना हिसाब-किताब के इस रकम को जमीन-जायदाद या सोना-चांदी खरीदकर कालाधन जमा कर लें।
ल्ल आमतौर पर माना जाता है कि खालिस नोटों के रूप में बिना हिसाब-किताब वाला धन यानी कालाधन जमा करना आसान होता है। ऐसा करने में बड़ी वैल्यू वाले नोट सबसे सुविधाजनक होते हैं। उन्हें रखने में भी आसानी। छिपाने में भी आसानी और बिना सरकारी निगरानी से लेनदेन में आसानी।
ल्ल यही वो वजह है कि दुनिया भर में जब भी कालेधन को रोकने के मकसद से नोटबंदी की जाती है तो उसके निशाने पर बड़ी वैल्यू के नोट होते हैं।
ल्ल भारत में 8 नवंबर 2016 को यही हुआ। नोटबंदी के निशाने पर थे सबसे ज्यादा वैल्यू वाले नोट यानी 1000 रुपए और 500 रुपए के सभी मौजूदा नोट, इन सभी को अवैध घोषित कर दिया गया।

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