केंद्र की इस दलील पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि कोर्ट इसका प्रभारी है और इस पर दलीलों को सुनने के बाद अदालत फैसला सुनाएगी।
पक्ष में तर्क दिया गया कि जब हम सार्वजनिक जगहों पर अपने पार्टनर के साथ जाते हैं तो हमें भी सम्मान मिलना चाहिए। हम सभी समान हैं तो हमें शादी में भी समानता मिले। हमें जीवन जीने का पूरे सम्मान के साथ अधिकार मिले
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील के दौरान औपनिवेशिक माइंडसेट का किया जिक्र। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 5 साल पहले एक बैरियर को खत्म किया था। लेकिन माइंडसेट के कारण ग्राउंड लेवल पर मुश्किल होती है। धर्मनिरपेक्ष कानून में जब आप पति-पत्नी की बात करते हैं तो ये जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए। पति-पत्नी की जगह स्पाउस का जिक्र होना चाहिए। इस बीच, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह सुनवाई मामले में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भी पार्टी बनाने का आग्रह किया है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि जब बात पर्सनल लॉ पर आएगी तो वहां भी इसका असर होगा। इस अदालत को इस मामले में कई बार अपनी राय रखनी होगी। मुख्य मुद्दा ये है कि हम मामले को समग्रता में नहीं संक्षिप्त मामले की तरह देख रहे हैं। 5 सदस्यीट पीठ में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं।